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तत्त्वनिर्णयप्रासादपरिपूर्ण करके ज्योतिषिकसहित गुरुको साष्टांग नमस्कार करके ऐसें कहे. हे भगवन् ! पुत्रका नामकरण करो. । तब गुरु तिन पितापितामहादिको, तिसके कुलके पुरुषोंको, और कुलवृद्धा स्त्रीयोंको, आगे बैठाके, ज्योतिषिको जन्मलग्न कहनेकेवास्ते आदेश करे. । तब ज्योतिषिक शुभपट्टेऊपर खट्टिका ( खडी) करके तिस बालकके जन्मलग्नको लिखे, स्थान २ में ग्रहोंको स्थापन करे.। तब बालकके पितापितामहादि जन्मलग्नकी पूजा करे. । तिसमें वर्णमुद्रा १२, रूप्यमुद्रा १२, ताम्रमुद्रा १२, क्रमुक (सुपारी ) १२, अन्य फलजाति १२, नालिकेर १२, नागवल्लीदल (पान) १२, इनोंकरके द्वादश लग्नका पूजन करे । इनही नव नव वस्तुयोंकरी नवग्रहोंका पूजन करे. ऐसें लग्नके पूजे हुए, तिनोंके आगे ज्योतिषिक लग्न विचार कहे. वे भी उपयोगसहित सुणे. । तदपीछे व्यावर्णनसहित लग्नको ज्योतिषिक कुंकुमाक्षरोंकरके पत्रेमें लिखके, कुलज्येष्ठको सौंप देवे.। बालकके पितादिकोंने ज्योतिषिका निवाप (पितृउद्देशपूर्वक) वस्त्र स्वर्णदान करके सन्मान करणा. । और ज्योतिषिक भी तिनोंके आगे जन्मनक्षत्रानुसारे, नामाक्षरको प्रकाश करके, स्वघरको जावे. । तदपीछे गुरु, सर्व कुलपुरुषोंको और कुलवृद्धा स्त्रीयोंको, आगे स्थापन करके (बिठलाके) तिनोंकी सम्मतिसें हाथमें दूर्वा लेके परमेष्ठिमंत्रपठनपूर्वक कुलवृद्धाके कानमें जातिगुणोचित नाम सुणावे. । तिसपीछे कुलवृद्धा नारीयां गुरुकेसाथ पुत्र गोदीमें लीयां तिसकी माता शिविकादि नरवाहनमें बैठी हुई, वा पादचारिणी अविधवायोंके गीत गाते हुए, वाजंत्र वाजते हुए, जिनमंदिरमें जावे. । तहां मातापुत्र दोनों जिनको नमस्कार करे, माता चौवीस २ सुवर्णमुद्रा, रूप्यमुद्रा, फलनालिकेरादिकरके जिनप्रतिमाके आगे ढौकनिका करे. । तदपीछे देवके आगे कुलवृद्धा स्त्रीयां बालकका नाम प्रकाश करे. चैत्य न होवे तो, घरदेरासरकी प्रतिमाके आगे यह विधि करना. तदपीछे तिसही रीतिसें पौषधशालामें आवे, तहां प्रवेश करके भोजनमंडली स्थानमें मंडलीपट्ट स्थापन करके तिसकी पूजा करे. मंडलीपूजाका विधि यह है. पुत्रकी माता " श्रीगातमाय नमः" ऐसा उच्चार करती हुई, गंध, अक्षत,
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