SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्दशस्तम्भः। ३२९ सम्यक्त्व पाके दृढ रहे, तिनोंके संप्रदायमें आज भी भरतप्रणीत वेदका लेश कर्मातरव्यवहारगत सुनते हैं; सोही यहां कहते हैं.॥ यत उक्तमागमे॥ सिरिभरहचकवट्टी आरियवेयाण विस्सुऊ कत्ता॥ . माहणपढणच्छमिणं कहिअं सुहझाणववहारं ॥१॥ जिणतिच्छे वुच्छिन्ने मिच्छत्ते माहणेहिं ते ठविया ॥ असंजयाण पूया अप्पाणं कारिया तेहिं ॥२॥ व्याख्याः-श्रीभरतचक्रवर्ती आर्यवेदोंका कर्ता प्रसिद्ध है. भरतने आर्यवेद किसवास्ते करे ? माहनोंके पढनेवास्ते, शुभ ध्यानकेवास्ते, और जगत्व्यवहारके वास्ते. । जिन तीर्थंकरके तीर्थके व्यवच्छेद हुए वह आर्यवेद तिन माहनोंने मिथ्यामार्गमें स्थापन करे, और असंयति होके तिनोंने अपनी पूजा जगत्में करवाई ॥ इन वेदोंका विशेष निर्णय जैनतत्त्वादर्शग्रंथसें जानना॥ ___ इस गर्भाधानसंस्कारमें इतनी वस्तु चाहिये ॥ पंचामृत स्नात्र १, सर्वतीर्थोदक २, सहस्रमूलचूर्ण ३, दर्भ ४, कौसुंभसुत्र ५, द्रव्य ६, फल ७, नैवेद्य ८, सदशवस्त्र दो ९, शुभआसन १०, शुभपट्ट ११, स्वर्णताम्रादिभाजन १२, वादित्र १३, पतिवाली स्त्रीयां १४ और गर्भवंतीका पति १५. ॥ इत्याचार्य श्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिवद्धगर्भाधानसंस्कारकीर्तननामप्रथमोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिकृतो बालावबोधस्समाप्तस्तसमाप्तौ च समाप्तोयं त्रयोदशस्तम्भः ॥१॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे प्रथमसंस्कारवर्णनो नाम त्रयोदशस्तम्भः ॥१३॥ ॥ अथचतुर्दशस्तम्भारम्भः॥ त्रयोदश स्तंभमें प्रथम संस्कारका वर्णन करा, अथ चतुर्दश स्तंभमें 'पुंसवन' नामा द्वितीय संस्कारका वर्णन करते हैं.॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy