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तत्त्वनिर्णयप्रासादमदिरासें मूत्र बनाया, तथा आमाशयगत अन्न ऊवध्य, पक्वाशयगत अन्न सब्ब,और नाडीगत वात, ये भी मदिरासें बनाए. पुरोडाश देवताके हृदयकरके इंद्रका हृदय उत्पन्न करा,सविता पुरोडाशकरके इंद्रका सत्य उत्पन्न करा, वरुण इंद्रकी चिकित्सा करता हुआ, यकृत् कालखंड और गलनाडिका उत्पन्न करता हुआ, वायव्यसामिकौड़पात्रोंकरके हृदयके दोनों पासोंके हाड और पित्त बनाए, मधु सिंचन करती स्थालियां (हांडीयां) इंद्रकी आंत्रे (नशां) बनी, पात्र गुदाके स्थान हुए, धेनु गुदा हुई, श्येनका पत्र प्लीहा हृदयके वामेपासे रहनेवाला शिथिल मांसपिंड हुआ, शचीयांकरके जननीस्थानीय (मातासदृशी) आसंदी, और नाभि तथा उदर हुए. सुराधानकुंभने (शचीयों) कर्मोकरके स्थूल आंत्रां (नशां) उत्पन्न करी, सतपात्रविशेष इंद्रका मुख, और शिर हुआ. पवित्र जिव्हा हुई. आश्विनीकुमार और सरस्वती मुखमें हुए, चप्यं पायु (गुदा) इंद्रिय हुआ, वाल सुरा छाणनेका वस्त्र, इंद्रका वैद्य गुदा और वीर्यके वेगवाला लिंग हुआ, अश्वियांकरके इंद्रके चक्षु, ग्रह आश्विदेवत्यांकरके चक्षुओंका अनश्वरपणा, छाग (वकरा)रूप पक्क हविकरके चक्षुसंबंधि तेज, गोधूम (गेंहू) करके नेत्रके रोम, बेरांकरके चक्षुनिर्विष्ट लोम (रोम) और नेत्रगत श्वेत और कृष्णरूप' अश्विनीकुमार करते भये. अवि और मेष ये दोनों वीर्यकेवास्ते इंद्रके नाकमें स्थित हुए, ग्रह सारस्वतोंकरके प्राणवायुका अनश्वर रस्ता करा, सरस्वतीने यवके अंकुरोंकरके इंद्रका व्यानवायु करा, बेरोंसें नाशिकाके रोम करे. वलकेवास्ते ऋषभ इंद्रका रूप करता भया, ग्रह ऐंद्रोंने भूत भविष्यत् वर्तमान शब्दग्राहि श्रोत्रंद्रिय (कर्ण) स्थापित करे, यव और बर्हि भ्रुवोंके रोम हुए, और बेर मुखसें मधुतुल्य लाला श्लेष्मादि हुए,-वृकके रोमसें शरीरके ऊपरके और गुह्यस्थानके रोम हुए, व्याघ्रके रोमसें मुखके ऊपरके दाढीमूछके रोम हुए, तथा यशकेवास्ते शिरके ऊपर केश, शोभाकेवास्ते शिखा-चोटी, कांति, और इंद्रियां, ये सर्व सिंहके लोम (रोम) से बने-इत्यादि__९३-अश्विनीकुमार आत्माके अवयवोंको जोडते हुए, तिनको सरस्वती अंगोंकरके धारण करती भई. इत्यादि
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