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नवमस्तम्भः। धारण नहीं कर सक्ती है. और अदितिने तो अन्नमात्रके भक्षण करनेसें गर्भ धारण करा, यह प्रमाणविरुद्ध नही तो, क्या है ? तिस अदितिक गर्भसें वारां आदित्य अर्थात् सूर्य उत्पन्न भए. ऋग्वेदयजुर्वेदमें लिखा है, प्रजापतिके नेत्रोंसे सूर्य उत्पन्न भया; यह परस्पर विरुद्ध है. ॥
यस्माहचोअपातंक्षन्यजुर्यस्मादपाकषन् । सामानि यस्य लोमानि अथर्वाङ्गिरसो मुखम्।स्कम्मन्तम् ब्रूहि कतमः स्विदेव सः॥
अथर्वसं० । कां० १० । प्र० २३ । अ० ४। मं० २०॥ भाषार्थः--(यस्मादृचो०) जिस परमात्मासें ऋग्वेद उत्पन्न हुए हैं, और (यजुर्यस्मादपाकषन् ) जिस परमात्मासे यजुर्वेद उत्पन्न हुआ है, . और (सामानि यस्य लोमानि) सामवेद जिस परमात्माके रोम हैं, तथा (अथर्वागिरसो मुखम् ) आंगिरस जो है अथर्ववेद सो जिसका मुख है. (स्कंभंतं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः) ऐसा जौ है स्कंभ अर्थात् सबका आश्रय भूत सो ( कतम:) कौन है? (ब्रूहि) कह-कथन कर (स्वित् एव सः) वही केवल एक परब्रह्म परमात्माही है, और कोइ नही.॥
[समीक्षा ] परमात्मासे ऋग्वेद उत्पन्न हुआ, और परमात्मासेही यजुर्वेद उत्पन्न हुआ, सामवेद परमात्माके रोम है, और अथर्ववेद परमात्माका मुख है. । यदि ऋग्वेद यजुर्वेद परमात्मासे उत्पन्न हुए हैं, तो क्या सामवेद और अथर्ववेद परमात्मासे नहीं उत्पन्न हुए हैं ? जो उनको रोम, और मुख कहा ! यदि सामवेद परमात्माके रोम, और अथर्ववेद परमात्माका मुख ऐसेंही कथन करना था तो, ऋग्वेद शिर, और यजुर्वेद बाहु, यह भी कह देना था ? वा अन्य कोइ अंग कहने थे. क्योंकि, यह दोनो वेद भी तो, परमात्माके अंग होने चाहिए; सामअथर्ववेदवत्. नही तो, उन दोनोंको भी रोम मुख न कहना चाहिए; इन चारोंमें क्या विशेष है ? जो दो वेदोंको परमात्मासे उत्पन्न हुए कहे; तीसरेको रोम और चौथेको मुख कह दिया. अन्य तो किंचित् भी विशेष नही, परंतु सोमव
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