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नवमस्तम्भः
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(क): (आप) पाणी - जल (प्रथमं ) पहिले ( तमित्) तमेव - तिसही (गर्भ) गर्भकों (दधे ) दधिरे - धारण करते भए ( यत्र ) जिस कारण - भूत गर्भ में (विश्वे ) सर्वे ( देवाः ) देवते ( समगछन्त ) संगताः संभूय वर्तते - एकत्र हो कर वर्तते हैं. अब तिस गर्भका अधार कहते हैं. ( अजस्य ) जन्मरहित परमेश्वर के ( नाभावधि ) नाभिस्थानीय स्वरूपमध्ये (एक) विभागरहित अनन्यसदृश कुछक बीज गर्भरूपको (अर्पितं ) स्थापित किया ( यस्मिन्) जिस बीज में (विश्वानि ) सर्व ( भुवनानि ) भूतजात (तस्थु) स्थित हुए. बीज स्थापित करने में स्मृतिका भी प्रमाण अपएव ससर्जाद तासु बीजमथाक्षिपत् तदएडमभवद्वैमं सूर्यकोटिसमप्रभमिति ” ॥ सोही सर्वका आश्रय है, परंतु तिसका अन्य कोई आश्रय नही है. ॥ ३० ॥
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[ समीक्षा ] यह भाष्यकारका कथन भी प्रमाणबाधित, और ऋग्वेद अष्टक ८ के, तथा यजुर्वेद अध्याय ३१ के कथनसें विरुद्ध है. क्योंकि, वहां परमेश्वरकी नाभिमें पाणीनें बीजरूप गर्भ स्थापित किया, इत्यादि वर्णन नही है. बाकी समीक्षाप्रायः ( अ ) समीक्षावत् जाननी. यहां यह भी कहना योग्य है कि, वेदोंके अर्थ सर्वज्ञ कथित नही है; जिसको जैसे रुचे है, वैसेही अर्थ वह लिख देता है. माधव, महीधर, ब्रह्मकुशलोदासी, दयानंद सरस्वतीवत् । यदि वेदोंके ऊपर सर्वज्ञकथित प्राचीन अर्थ नियमानुसार होते तो, ऐसें कभी न होता. परंतु प्रथम वेदही सर्वज्ञके कथनकरे सिद्ध नही होते हैं तो, अर्थोंका तो क्याही कहना है ? परस्पर विरुद्ध होनेसें. और यही असर्वज्ञकथित वेद होने में बडा भारी दृढ प्रमाहै. इस वास्ते सज्जन पुरुषोंको तटस्थ होकर सत्यासत्यका निर्णय करना चाहिये.
ब्रह्म ब्राह्मणं पुष्करे ससृजे स खलु ब्रह्मा सृष्टश्चितामापेदे, केनाहमेकाक्षरेण सर्वांश्च कामान्, सर्वांश्च लोकान्, सर्वांश्च देवान्, सर्वांश्च वेदान्, सर्वांश्च यज्ञान्, सर्वांश्च शब्दान्, सर्वांश्च व्युष्टीः, सर्वाणि च
+ ( क ) जहां ऐसा संकेत होवे वहां भाष्यकारका अर्थ जाणना.
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