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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १९७ तत्त्वनिर्णयप्रासाद है, सो सर्व स्वकपोलकल्पित, और प्रमाणबाधित है. क्योंकि, किसीजगें चैतन्य उपादानकारणसें जडकार्यकी उत्पत्ति लिखी है, और किसीजगें जड उपादनकारणसें चैतन्य कार्यकी उत्पत्ति लिख मारी है, और किसी जगें रूपीसें अरूपीकी, और अरूपीसें रूपीकी उत्पत्ति घसीट मारी है. ___ और आपही जविरूप धारण करा, हिंसा, मृषावाद, चौरी, मैथुन, मांसभक्षणादि, येह सर्व जीवोंकों जीवोंके कर्मानुसार लगा दीए; आपही अपना सत्यानाश कर लिया. सृष्टि क्या रची, एक मोटी आपदाका जं. जाल अपने आप, अपने गलेमें डाल लिया! जेकर सृष्टि न रचता, और प्रलयदशामें सुखसे सूता रहता तो अच्छा था!!! पूर्वपक्षः--यदि सृष्टि न रचता तो, जीवोंकों कर्मोंका फल कैसे भुक्ताता? उत्तरपक्षः- इसका समाधान ऋग्वेदके सृष्टिक्रमकी समीक्षामें करेंगे. बत्तीसमें श्लोकसें लिखा है कि, तिस ब्रह्माने अपनी देहके दो भाग करे, एक भागका पुरुष बना, और दुसरे भागकी स्त्री बनी, तिस स्त्रीकेसाथ मैथुनधर्म करा, तिस्से विराट् उत्पन्न भया, तिस विराट्ने तप करा, तप करके मनुकों अर्थात् मेरेकों उत्पन्न करा, कैसा हूं मैं मनु ? सर्व इस जगत्का रचनेवाला, ऐसें मुझ मनुकों हे द्विजोत्तम ! तुम जानो; पीछे में प्रजाके सृजनकी इच्छा करते हुएने, अतिशयकरके दुश्वर तप तपीने मैनें पहिला दश प्रजापतियोंकों सृजन करे, जिनके नामऊपर लिखे हैं, इनके सिवाय सात मनुयोंकों सृजन करे इत्यादि. वाचकवर्गो ! जरा विचार करके देखो कि, जो कथन ऋग्वेदसें और युक्तिसें विरुद्ध है, सो मिथ्या वाग्जाल मनुजीने रच कर अनेक भव्यजनोंकों फसाये हैं. देखो ! ब्रह्माजीने आपही स्त्रीपुरुष बन कर मैथुन करा, तिस्से विराट्नामा पुरुष उत्पन्न भया, यह कथन कैसा लजनीय है कि, सर्वजगत्का पितामहभी मैथुन करता है ? और विना स्त्रीके विराट्नामा पुत्र न उत्पन्न कर सका, फेर तिसकों सर्वशक्तिमान् मानना, यह कैसी अज्ञानता है ? तथा विराट्ने मनुको विनास्त्रीके कैसें उत्पन्न करा ? और For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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