________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
१२६
तत्त्वनिर्णयप्रासादही उत्पन्न होताहै, अथवा आत्मा एकांत नित्यही है, अथवा आत्मानामक कोई पदार्थ है नहीं, एकांतक्षणिक विज्ञानाद्वैतरूपही तत्व है, एकान्त ब्रह्मा द्वैतरूपही तत्त्व है, अथवा आत्मा सर्वव्यापक है, अथवा अंगुष्ठपर्वमात्र, वा तंदुलमात्र, वा स्यामाकधान्यजितना आत्मा है; सृष्टि, प्रलय, ईश्वर करता है, जीवोंके कर्मोंका फलप्रदाता ईश्वर है, वा जीवोंका पूर्वोत्तर जन्म नहीं है, इत्यादि चैतन्य, और जडपदार्थोंके स्वरूपका विपरीतकथन जिस शास्त्रमें होवे, सो शास्त्र अज्ञानरूप है.
तथा कुश्रुति,-जिस शास्त्रमें जीवहिंसा करणेमें धर्म कथन करा होवे, यथा ' वेदविहिता हिंसा धर्माय' इत्यादि, तथा जिस शास्त्रके श्रवण करणेसें श्रोताको अधर्मबुद्धि उत्पन्न होवे, वात्स्यायनादिकामशास्त्रवत्, सो कुश्रुति. ___ कुदृष्टि,-जिसकी बुद्धि, कुदेव, कुगुरु, कुधर्मकरके वासित होवे, सो कुदृष्टि; और कुमार्ग, एकांत नित्य, एकांत अनित्य, इत्यादि दुर्नयके मतसे जिस शास्त्रमें कथन करा होवे, संसारके मार्गकों मोक्षका मार्ग, और मोक्षमार्गकों संसारका मार्ग कहना, तथा सम्यग् देव गुरु धर्मका स्वरूप जिसमें कथन नहीं करा होवे, सो कुमार्ग, इत्यादिदूषणोंकों त्यागके शुद्धमार्गकों कथन करे, अर्थात् सद्ज्ञान, सत्श्रुति, सदृष्टि, सन्मार्गका कथन करे,
और पूर्वोक्त वस्तुयोंका निषेध करे तो, इसमें दूसरोंका क्या अपवाद है ? अर्थात् क्या निंदा है ? सो, परीक्षको ! तुमही विचार करो ॥ २१ ॥
प्रत्यक्षतो न भगवानृषभो न विष्णु
रालोक्यते न च हरोन हिरण्यगर्भः ॥ तेषां स्वरूपगुणमागमसंप्रभावा
ज्ज्ञात्वा विचारयथ कोत्र परापवादः ॥ २२ ॥ व्याख्या-प्रत्यक्ष प्रमाणसें तो, न भगवान् ऋषभदेव दिखलाइ देता है, और न प्रत्यक्षप्रमाणसें विष्णु दिखलाइ देता है, और न हर-महादेव दीखता है, न ब्रह्माजी दीखता है, अब इन पूर्वोक्त देवोंका स्वरूप जाण्याविना कैसे जाना जावे कि, तिनम कैसे कैसे गुण थे ? इसवास्ते ये
For Private And Personal