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तत्वनिर्णयप्रासादप्रमुख रक्खेगा, उसने अवश्य किसी वैरीकों मारणा है; नही तो, शस्त्र रखनेसे क्या प्रयोजन है? जिसकों वैर विरोध लगा हुवा है, सो परमेश्वर नहीं हो सकता है; जो ढाल वा खड्ग रक्खेगा वह अवश्यमेव भयसंयुक्त होगा,
और जो आपही भयसंयुक्त है तो, उसकी सेवा करनेवाले निर्भय कैसे हो सक्ते हैं ? इस हेतुसे द्वेषसंयुक्तको परमेश्वर कौन बुद्धिमान् कह सक्ता है ? परमेश्वर जो है, सो तो वीतराग है, सिवाय वीतरागके अन्य कोइ, रागी, द्वेषी, परमेश्वर कभी नहीं हो सक्ते हैं.
तथा जिसके हाथमें जपमाला है, सो असर्वज्ञताका चिन्ह है; जेकर सर्वज्ञ होता तो मालाके मणियोंके विनाभी जपकी संख्या कर सकता; और जो जपको करता है सोभी अपनेसे उच्चका करता है, तो, परमेश्वरसे उच्च कौन है? जिसका वो जप करता है.
तथा जो शरीरको भस्म लगाता है, और धूणी तापता है, नंगा होके कुचेष्टा करता है, भांग, अफीम, धत्तूरा, मदिरा प्रमुख पीता है, तथा मांसादि अशुद्ध आहार करता है, वा, हस्ति, ऊंट, गर्दभ, बैल प्रमुखकी जो असवारी करता है, सोभी सुदेव नही हो सक्ता है; क्योंकि, जो शरीरको भस्म लगाता है, और धूणी तापता है, सो किसी वस्तुकी इच्छावाला है, सो जिसका अभीतक मनोरथ पूरा नहीं हुआ, सो परमेश्वर कैसे हो सकता है ? और जो नशे, अमलकी चीजें, खाता पीता है, सो तो नशेके अमलमें आनंद और हर्ष ढूंढता है, और परमेश्वर तो सदा आनंद और सुखरूप है; परमेश्वरमें वो कौनसा आनंद नहीं था जो नशा पीनेसे उसकों मिलता है? और जो असवारी हे सो परजीवोंको पीडाका कारण है, और परमेश्वर तो दयालु है, वो परजीवोंको पीडा कैसे देवे? और जो कमंडलु रखता है सो शुचि होनेके कारण रखता है, और परमेश्वर तो सदाही, पवित्र है उनको कमंडलुसे क्या काम है? ___ तथा निग्रह, जो जिसके उपर क्रोध करे, तिसकों बध, बंधन, मारण, रोगी, शोकी, अतीष्टवियोगी, नरकपात, निर्धन, हीन, दीन, क्षीण करे; और अनुग्रह, जिसके ऊपर तुष्टमान होवे, तिसकों इंद्र, चक्रवर्ती, बल.
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