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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिकाचार्यकथा । भयवं भारहवासे, किं को वि हु इय निगोयवक्खाणं । जाणइ अज्ज वि काओ, भणई जिणो कालगायरिया ॥१४०॥ अन्ज वि जाणंति जहा, परूविया जिणवरेहिं ते जीवा । तं सोउं वजहरो, बंभणरूवेण संपत्तो ॥१४१॥ सूरिसमीवं कोऊहलेण पुच्छेण पणमिउं भयवं । गझं निगोयजीवा, वक्खाणह जे जिणुविठ्ठा ॥१४२॥ तओ गोला य असंक्खेज्जा, अस्संखनिगोयगोलो भणिओ। इक्विक्कम्मि निगोए, अणंतजीवा मुणेयव्वा ॥१४३॥ इच्चाइ समक्खाए, गुरुणा इंदो विसेसनाणत्यं । पुच्छइ पुणो वि सूरि, भयवं ! मह कित्तियं आउं ? ॥१४४॥ परिकहह जेह गिण्हामि, अणसणं तं सुणेवि उवओगं । सूरी मुयनाणेणं, ना देइ तओ पवड्वेति ॥१४५॥ दिवसा पक्खा मासा, वरिसा पलिया य जाव संजाया । दो अयरा पडिपुन्ना, तस्साउयमाणमह दट्टुं ॥१४६॥ तो सविसेसुवओगाओ, जाणिय(उ) भणइ तं मुणिंदो वि । इंदो तुमं ति तं सोउमह हरी हरिसिओ संतो ॥१४७॥ वररयणकिरीटधरो, होउं मणिरयणभूसियसरीरो। सूरीण पायकमलं, पणमेउं थुणइ भत्तीए ॥१४८॥ जय मुररयणमहोयहि !, जय पवयणगयणभूसियमियंक ! । जय परमत्थपयासण !, जय काळयमूरि ! गयराय ! ॥१४९॥ इय दूसमाए जेणं, पभावणा पव' ...............। ............ ॥१५॥ ................................................ सिरसा नमसामि । साहुजणपव्वयत्यं, तो हरी वसहिदारुम ........ ॥१५१॥ ...[...] व पि हु विहरंतो, कलिउँ कालं भवस्सस्वं च । काऊण गणाहिवई, गच्छे तो अणसणं विडियं ॥१५२॥ खामितो सत्तगणं, मुमरंतो समयसारपरमिटिं । मुत्तुमसारसरीरं, सारं सुरलोयमणुपत्तो ॥१५३।। इय पवयणप्पमावणफळमउलं निसणिऊणमडरम्मं । जिणपवयणस्स समं, पभावणं कुणह भो निश्च ॥१५४॥ इति कालिकाचार्यकथानकं समाप्तम् ॥ ग्रन्थानम् २११॥ भत्र पत्रमेकप्रदेशे त्रुटितम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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