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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिकाचार्यकथा। -ते कालिकाचार्य विहारक्रम करता भविक जीवि प्रतिबोधता उजेणी नाम नगरीइ पहुता । हवइ सरसती बहिनि पणि भाईनइ पूठि दीक्षा लेई प्रवर्तनी पदइ वर्तमान विहरती ते पणि तत्र पहुती ॥९॥ अह तत्य नरवर(रिंदो, गद्दभिविद्यासुसाइणसुरं(रिं)दो । नामेण गद्दभिल्लो, इत्थीलोलो सय(या) वसइ ॥१०॥ -अथानंतर उजेणीनयरीनायक गर्दभी विद्यानी भली साधना करी सुरेन्द्र भणीए इन्द्र महाराज समान बलिष्ट पराक्रमी गर्दभिल्ल नाम राजा स्त्रोलोलुप सदा प्रवर्तइ ॥१०॥ काममयपरवसेणं, रइरूपसमा सरस(स्स)ई तेण । दिहा नि(द)ढेण तओ, हीरंती विलवए बाला ॥११॥ -ते गर्दभिल राजा अन्यदा प्रस्तावि क्रीडा निमित्त नगर बाहरि वनमाहि जेतलइ पहुंचइ, तेतलइ ते महासती सरस्वती प्रवर्तिनी रूपइ ते रंभा तिलोत्तमा समा नगरमाहि आवती देखी। राजा श्रीगर्दभिल कंदर्परूप जे मदातिणइ करी परवस हुउ हुँतउ चीतवह; " स्युं जगमाहि कंदर्पदेव नथी ! जेह भणी एहवी सुरूप स्त्री सुसील ?" इम चीतवी, तिणह अति पापिष्टइ ते महासती हरी । ते महासती तिवारइ इम विलाप करवा लागी ॥११॥ सा ते विलाप हा सुयधर! हा कालयमूरी!, मह रक्ख रक्ख एयाउ । जिणसासणम्मि जम्हा, उड्डाहनिवारणं साहु ॥१२॥ -हे भ्रात ! अहो श्रुतधर ! अहो शासननायक ! तुम्हा हुंता मुझनइ ए पापिष्ट लेइ नाइ छइ, एह हुँती मुझनइ राखउ, जेह भणी जिणसासण- उह निवारि, चारु भलं । सासनना विद्वेषीनइ बोधिनास । अणंत संसारीपणुं बोल । यतः " उड्डाहकारगाणं, बोहीनासो अणंतसंसारो"। जिनशासनना उड्डाहकारक मनुष्यनइ बोधि कहतां सम्यक्तवरो नास अनंतां संसारीपणो बोलउ ॥१२॥ अंतेउरम्मि णीया, तेण नरे(रि)दाहमेण अह सूरी । संजुओ(लग्गो) पडिवोहणवयणं तस्सेवमक्खायं ॥१३॥ -तिणइ नरिंदाधमइ इम विलाप करती महासती अंतेउरमाहि आणं न्याय मजादा मूकीनइ । यतः" किमु कुवलयनेत्राः सन्ति नाकं न नार्यः ?, त्रिदशपतिरहल्यां तापसी यस्तषेवि । हृदयणकुटीरे दीप्यमाने स्मराग्ना चुचितमनुचितं वा वेति कि पण्डितोऽपि ?"+ ॥ -किसउ कमलसारीखा नेत्र छह एहवी इन्द्राणी थकइ त्रिदसपति कहतां इंद्र अहिला जे तापसी जे सेवी । हृदय कहितां हिया रूपीया तृणकुटीर छापरउ तिहां कंदर्परूपि अग्नि लागइ हुंतइ उचित अनुचित भली पाडुई बात न जाणइ । पंडित कोई "विकलयति कलाकुशलं, इसति [शुचिं?] पण्डितं विडम्बयति । अधरयति धीरपुरुषं, क्षण मकरध्वजो देवः" ॥ + मूलादर्श एताहगशुद्धो पाठः किम कुवलयनेत्रा संत निनाकनाकनार्ज त्रिदशपतिरहिला तापसी यस्तिषेवि । हृदयतृणकुटीरे दीप्यमानास्मराग्नावुचितिमनचितं वा वेत्त क पण्डितोऽपि ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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