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________________ SA.Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobatiram.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir भावार्थः-घड़ी में भरने के लिये जल को वख द्वारा छान लेना चाहिये । वह जन या तो मेघ का निर्मल जल हो अथवा शरतकाल की पर्वतीय नदी का हो॥६७ ॥ बारस मासा संवच्छरो य, पक्खा उ ते उ चउवीसं । तिएणेव य सट्टिसया, हवंति राईदियाणं य ॥ ६८ ॥ छाया-द्वादशभिर्मासैः संवत्सरब, पक्षास्तु ते तु पतुर्षिशतिः। श्रीण्येव च पटिशतानि, भवन्ति रानिन्दिवानि ॥६८॥ भावार्थ:-बारह मास का एक वर्ष होता और एक वर्ष के चौवीस पक्ष होते हैं। चौवीस पक्षों के तीन सौ साठ दिन रात होते हैं ॥ ६ ॥ एग य सयसहस्स, तेरस चेव य भवे सहस्साई । एग य सयं नउयं, हुति अहोरत्त उस्सासा ॥६६॥ छाया-एकच शत सहस', त्रयोदश नैव च भवेयुः सहस्राणि । एकच शतं नवति भवन्ति अहोराने उच्छवासाः॥६६॥ भावार्थ:-एक दिन रात में एक लाख तेरह हजार और एक सौ नब्वे उच्छवास होते हैं।। ६६ ॥ तिचीस सय सहस्सा, पंचाणउई भचे सहस्साई । सत्त य सया अणणा, हवंति मासेण उस्सासा ॥ ७० ॥ छाया-प्रयत्रिशच्छत सहस्राणि, पचनवतिश्च भवेयुः सहस्राणि । सप्तशलान्यनूनानि, भवन्ति मासेनोच्छ्वासाः ॥ ७० ॥ भावार्थ:-एक मास में ३३ लाख १५ हजार और पूरे सात सौ उच्छ्वास होते हैं॥७॥ For Private And Personal use only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
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