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Acharya Si Kailashsaga
१ पौण्डरीकाध्य. पुण्डरीकनिक्षेपाः
सूत्रकृताङ्गे
एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियनामगोए य । एते तिन्निवि देसा दव्वंमि य पोंडरीयस्स ॥१४६ ॥ २श्रुतस्क- तेरिच्छिया मणुस्सा देवगणा चेव होंति जे पवरा । ते होंति पुंडरीया सेसा पुण कंडरीया उ ॥ १४७ ॥ न्धे शीला- जलयर थलयर खयरा जे पवरा चेव होंति कंता य । जे अ सभावेऽणुमया ते होंति पुंडरीया उ॥१४८॥ कीयायां अरिहंत चक्कवट्टी चारण विजाहरा दसारा य । जे अन्ने इहिमंता ते होंति पोंडरीया उ ॥॥१४९॥
भवणवइवाणमंतरजोतिसवेमाणियाण देवाणं । जे तर्सि पवरा खलु ते होंति पुंडरीया उ ॥ १५०॥ ॥२६॥ कंसाणं दूसाणं मणिमोत्तियसिलपवालमादीणं । जे अ अचित्ता पवरा ते होंति पोंडरीया उ ॥ १५१ ॥ ॥६ जाई खेत्ताई खलु सुहाणुभावाइं होंति लोगंमि । देवकुरुमादियाइं ताइं खेत्ताई पवराई ॥ १५२ ॥
जीवा भवहितीए कायठितीए य होंति जे पवराते होंति पोडरीया अवसेसा कंडरीया उ॥ १५३ ॥ गणणाए रज्जू खलु संठाणं चेव होंति चउरंसं । एयाइं पोंडरीगाइं होंति सेसाई इयराइं ॥ १५४॥ ओदइए उवसमिए खइए य तहा खओवसमिए अ । परिणामसन्निवाए जे पवरा तेवि ते चेव ॥ १५५ ॥ अहवावि नाणदंसणचरित्तविणए तहेव अज्झप्पे । जे पवरा होति मुणी ते पवरा पुंडरीया उ ॥ १५६ ॥ एत्थं पुण अहिगारो वणस्सतिकायपुंडरीएणं । भावंमि अ समणेणं अज्झयणे पुंडरीअंमि ॥१५७॥ नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावात्मको महति पविधो निक्षेपो भवति, तत्र नामस्थापने सुज्ञाने, द्रव्यमहदागमतो नोआगमअचित्त मीसगेसुं दब्वेसु जे य होति पवरा उ । ते होंति पोंडरीया, सेसा पुण कंडरीया उ ॥ १ ॥ इति प्रत्यन्तरेऽधिका गाथा ॥
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॥२६७॥
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