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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ६ आर्द्रकमुनेर्गोशालकस्य संवादनि० ५७५ तदुक्तम्-रागद्वेषो विनिनित्य किमरण्ये करिष्यसि । ___अथ नो निर्जितावेतौ किमरण्ये करिष्यसीति ।।गा० १॥ मूलम्-धम्मं कहतस्स उ गस्थि दोसो, खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स। भासा य दोसे य विवज्जगस्त, गुणे य भासा य णिसेवगस्त ॥५॥ छाया-धर्म कथयतस्तु नास्ति दोषः क्षान्तस्य दान्तस्य जितेन्द्रियस्य । भाषायाः दोषस्य विवर्जकस्य गुणश्च भाषाया निषेत्रकस्य । ५॥ निष्ठ होने के कारण जनसमूह से घिरे होने पर भी एकाकी हैं। उनके लिए दोनों अवस्थाएँ समान हैं। कहा भी है-'रागद्वेषौ विनिर्जित्य' इत्यादि। 'यदि राग और द्वेष पर विजय प्राप्त करलिया है तो अरण्य में जाकर क्या करेगा? और यदि रागद्वेष नहीं जीते हैं तो भी जंगल में चले जाने से क्या लाभ ? ॥४॥ 'धम्मं कहंतस्स' इत्यादि। शब्दार्थ-'धम्म-धर्म' श्रुत चारित्र धर्मका 'कहतस्स-कथयतः' उपदेश देनेवाले को 'दोसो णस्थि-दोषो नास्ति' कोई दोष नहीं होता। क्यों कि-'खंतस्य-क्षान्तस्य' क्षान्त क्षमायुक्त 'दंतस्स -दान्तस्य' दान्त 'जिइंदियस्स-जितेन्द्रियस्य जितेन्द्रिय 'य-च' और 'भासाय दोसे विव. ज्जगस्स-भाषायाः दोषविवर्जकस्थ' भाषा के दोषों को छोडकर 'भासाહેવાથી જનસમૂહથી ઘેરાયેલા હોવા છતાં પણ એકલા જ છે. તેને બને अस्थायी सरभी . खुप छ है- 'रागद्वेषौ विनिर्जित्य' त्या જે રાગ અને દ્વેષ પર વિજય પ્રાપ્ત કરી લીધું હોય તે જંગલમાં જઈને શું કરવાનું બાકી રહે છે અને જે રાગદ્વેષ જીતેલ નથી તે પછી જંગલમાં જઈને શું લાભ થવાનો છે? પગાકા ____ 'धम्म कह तस्त्र' या मा- 'धम्म-धर्म' श्रुत यात्रि३५ मन 'कहंतस्स-कथयतः' अपहेश पावणाने 'दोस्रो णस्थि-दोषो नास्ति' ॐ४ ५४ होष नथी. भ3'खंतस्स-क्षान्तस्य' क्षान्त-क्षमाशात अने, 'दतस्स-दान्तस्य' हान्त तथा 'जिई. दियस्स-जिवेद्रियस्य' waन्द्रिय 'य च' अन 'भामा य दोसे विवज्जगस्स-भाषायाः For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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