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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८ सूत्रकृतासूत्रे मूलम्-दीसंति समियायारा भिक्खुणो साहजीविणो। एए मिच्छोवजीवंति ईइ दिटुिं न धारए ॥३१॥ छाया--दृश्यन्ते समिताचारा भिक्ष ः साधु नीविनः । .. एते मिथ्योपजीवन्ति, इति दृष्टिं न धारयेत् . अन्वयार्थः-(साहुजीविणो) साधुनीविनः (समियाया।) समिताचारा:-संय. मादिमन्तः (भिक्खु गो) भिक्षा-निरवधभिक्षणशीलाः (दीसंति) दृश्यन्ते (एए. करने योग्य कहने से हिंसा का अनुमोदन होता है और अवध्य कहने से अपराध का अनुमोदन तथा राजकीय कानून का विरोध होता है। अतएव ऐसे प्रसंग पर साधु को मौन ही रहना चाहिए ॥३०॥ 'दीसंति समियायारा' इत्यादि - शमार्थ-'साहुजीविणो-साधुनीविनः' निष्पाप जीवन व्यतीत करने वाले तथा 'समियायारा-समिताचाराः' यतना पूर्वक आचरण करनेवाले 'भिक्खुणो-भिक्षवः' निरवध भिक्षा ग्रहण करने वाले पुरुष 'दीसंति-दृश्यन्ते' देखे जाते हैं 'एए मिच्छोवजीवंति-एते मिथ्योपजीवन्ति' वास्तव में ये मिथ्याचारी हैं अर्थात् कपट पूर्वक आजीविका करते हैं 'इइ दिष्टुिं न धारए-इति दृष्टिं न धारयेत्' इस प्रकार की दृष्टि धारण करनी नहीं चाहिए ॥३१॥ - अन्वयार्थ-निष्पाप जीवन व्यतीत करने वाले तथा यतनापूर्वक તે કેવળ દયાને માટે જ પ્રયત્ન કરતા રહેવું. અપરાધીને વધ કરવાને ગ્ય કહેવાથી હિંસાનું અનુમોદન થાય છે, અને અવધ્ય કહેવાથી અપરાધનું અનુમાદન અને રાજકીય કાયદાને વિરોધ થાય છે. તેથી જ આવા પ્રસંગે સાધુએ મૌન જે ધારણ કરવું જોઈએ. એજ ઉત્તમ માર્ગ છે. ૩મા 'दीसंति समियायारा' त्या 'शा-'साहुजीविणो-साधुजीविनः' निहाप ५१५. १२D. 4. चाता पाणा तथा 'समियायारा-समिताचाराः' यतना' माय२५५. ४२१॥ 'पासा. 'भिक्खुणो-भिक्षवः' निर१ लिAL Aai y३५। 'दीसंति-दृश्यो ' वामां आवे छे.. 'एए मिच्छोवजीवंति-एते मिथ्योपजीवन्ति' वास्तqिsa तसा मिथ्यायारी छ, अर्थात् ४५८ पूर्व मालवा रे छ, 'इइ दिक्षिक धारए-इति दृष्टि न धारयेत्' । प्रमाणुनी टि २९ ४२वी न . usu અન્વયાર્થ-નિષ્પાપ જીવન વિતાવવાવાળા તથા યતના પૂર્વક આભાર For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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