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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका हि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम् छाया--ये केचित्क्षुदकाः पाणा अथवा सन्ति महालया। सहशं तेषां वैरमिति असदृशमिति च नो वदेत् ६। अन्वयार्थ:--(जे केइ) ये केचित् (खुड्गा) क्षुदकाः-एकेन्द्रियाः अल्पशरीरचन्ता वा, (गणा) प्राणाः-पाणिनो जीवाः, (अदुवा) अथवा-ये केचित् (महा. बया) महालया:-विशिष्टदेहवन्तः पश्चेन्द्रिया अश्वगजादयः 'सति' सन्ति-विद्यन्ते (तसि) तेषाम्-क्षुद्राणां महालयानां वा (सरिस) सदृशम्-समानमें रूपकमेव . 'जे का खुड्डगा पाणा' इत्यादि। - शब्दार्थ -'जे केह-ये केचित्' जो एकेन्द्रिय आदि 'खुडगा-क्षुद्रकाः क्षुद लघुकायवाले 'पाणा-प्राणा:' प्राणी है 'प्रधा-अथवा' अथवा जो कोई 'महालया-महालयाः' घोडा हाथी आदि महाकाय 'संति-सन्ति' पश्चेन्द्रिय प्राणी है 'तेनि-तेषाम्' उन दोनों की हिमा से 'सरिसं-सहशम् समान ही वैर होता है। अथवा 'असरिसं-असदृशम् असमान बेरं-वैरम्' वैर होता है 'त्ति-इति' ऐसा 'जो वए-नो वदेत नहीं कहना चाहिए अर्थात् लघुकाय और महाकाय प्राणिका घात करनेसे समान ही हिंसा होती है, ऐसा एकान्त कथन नहीं करना चाहिए और उनका घात करने पर असमान ही हिंसा होती है, ऐसा एकान्त वचन भी नहीं बोलना चाहिए ॥गा०६॥ अन्वयार्थ--जो एकेन्द्रिय आदि क्षुद्र लघुकायवाले प्राणी हैं अथवा जो कोई अश्यहाथी आदि महाकाय पंचेंद्रिय प्राणी हैं, उन दोनों की 'जे केइ खुड़गा पाणा' त्या शहाथ-'जे केइ-ये केचित्' २ मेन्द्रिय विगेरे 'खुङगा-क्षुद्रकाः' क्षुद्र सधुया 'पाणा-प्राणाः' प्राणी छे, 'अदुवा-अथवा' अथवा 'महालया-महालया:' हाथी थे. विगेरे महाय-मोटा शरीरवाणा 'संतिमन्ति' पन्द्रिय प्राणी छे. 'तेसि-वेषाम्' ते मन्नेनी हिंसायी ‘सरिसं-सह शम' समान ३२ थाय छ, अथवा 'असरिसं-असदृशम्' असमान वेरवेरम्' ३२ थय छ 'त्ति-इति' में प्रमाणे ‘णो वए-नो वदेत्' हे न જોઈએ. અર્થાત્ લઘુકાય અને મહાકાય (નાના મેટા) પ્રાણીને ઘાત કરવાથી સરખી જ હિંસા થાય છે. એ પ્રમાણે એકાન્ત કથન કરવું ન જોઈએ. અને તેનો ઘાત કરવાથી અસમાન હિંસા જ થાય છે, એ પ્રમાણે એકાન્ત વચન પણ બલવું ન જોઈએ. ગાદો અન્વયાર્થ-જે એકેન્દ્રિય વિગેરે ક્ષુદ્ર લઘુકાયવાળા પ્રાણી છે. અથવા જે ઘડા હથી વિગેરે મહાકાય પંચેન્દ્રિય પ્રાણી છે. એ બનેની હિંસાથી For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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