SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - समायोधिती टीका वि. श्रु. अ.४ प्रत्याख्यानक्रियोपदेशः सूकम्-आयरिए आह-तत्थ खल्लु भगक्या दुवे विटुंता पष्णता, लं जहा-संनि दिटुंते य असंनि दिटुंते य, से किं तं संनि दिस॒ते । जे इमे संनिपंचिंदिया. पज्जत्तगा एएसिणं छ जीवनिकार पडुरुच तं जहा-पुढाकाय जाय तसकार्य, से एगहो पुडवीकारणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि, तस्स गं एवं भवाएवं खलु अहं पुढवीकारणं किञ्चं करेमि वि कारवेमि वि, जो पैर गं से एवं भवइ इमेण वा इमेण का, से एएणं पुढीकारणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि से गं तओ पुढवीकायाओ असंजय अविरयअप्पडिहयअपञ्चक्खायपावकम्मे यावि भवइ, एवं जाव तसकाए त्ति भाणियवं से एगइओ छ जीवनिकाएहि किच्चं करेइ वि कारवेइ वि, तस्स णं एवं भवइ-एवं खलु छ जीवनिकाएहि किच्चं करेमि वि कारवेमि वि, णो चेव णं से भवइ-इमेहि वा इमेहि वा, से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहि जाव कारवेइ वि से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं असंजय अविरय अप्पडिहय अप चक्खायपावकम्मे, तं जहा-पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, एस खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहयअपच्चक्खायपावकम्मे सुविणमवि अपस्सओ पावे य से कम्मे कज्जइ से तं संनिदिटुंते । से किं तं असंनिदिटुंते ? जे इमे असन्निणो पाणा, तं जहा-पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाहया छटा वेगइया तसा पाणा, जेसिं णो तक्काइ वा सन्नाइ का पन्नाइ वा मणाइ वा वई का सयं का करणाए अन्नेहि वा For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy