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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतागसूत्र __ अन्वयार्थ:--'मईम' मतिमान-केवलज्ञ नीत्यर्थः 'अणुशीय' अनुविचिन्त्य केवलज्ञानेन ज्ञात्वा (अंजू) ऋजु-सरलम् (समाहि) समाधि-मोक्षमारकम् (धम्म) धर्म-श्रुचारित्राख्यम् (आघ) आख्यातवान्-कथितवान् (तमिण) तमिम धर्मम् (मुणेह) मत्तः शणुत हे शिष्याः ।, (अपडिन्न) अपतिज्ञः-इहलोकपलोकाशंसारहितः (पमाहिपत्ते) ज्ञानादिसमाधिपाप्तः (अणियाणभूएसु) भूतेषु अनिदान:, निदानम्-आरम्भरूपं तद्रहितः 'भिवख' भिक्षुः (परिब्बएज्जा) परिव्रजेत्संयमे पराक्रमेव इति ॥१॥ टीका--'मईमं मतिमान् मननं मतिः-समस्तपदार्थविषयकं ज्ञानम् ताश श्रुत चारित्र रूप धर्म का 'आघं-आख्यातवान्' कथन किया है 'तमिणं तमिमं' उस धर्म को 'सुणेह-शृणुत' हे शिष्यो तुम लोग सुनो 'अपडिन्न-अप्रतिज्ञा' अपने नपका फल न चाहता हुआ 'समाहिपत्तेसमाधिप्राप्त' समाधिको प्राप्त 'अणिधाण भूएप्सु-अनिदानो भूतेषु' प्राणियोंका आरंभ न करता हुआ'भिक्खू-भिक्षुः साधु 'परिवएजापरिव्रजेत्' शुद्ध संयमका पालनकरे ॥१॥ ___ अन्वयार्थ-मतिमान अर्थात् केवलज्ञानी ने, चिंतन करके अर्थात् केवळज्ञान से जान कर सरल समाधि धर्म का कथन किया है। इस धर्म को श्रवण करो। ऐहिक एवं पारलौकिक आकांक्षा से रहित, समाधि को प्राप्त भूतों (जीवों) के विषय में आरंभ न करने वाला भिक्षु सं-म में पराक्रम करे ॥१॥ टीकार्य-मनन करना मति है । यहाँ मति का अर्थ है-समस्त 'बाघ-आख्यातवान्' थन यु छे. 'तमिण-तमिम' मे धमन 'सणेहश्रृणुत' हे शिष्यो तमे ३t Hiभो 'अपडिन्ने-अप्रतिज्ञः' पाताना तपनु'३०० न २०1॥ ५५॥ 'ममाहिपत्ते-समाधिप्राप्तः' समाधिने प्राप्त 'अणियाण भूएसुअनिदानो भूतेषु' प्रारियान। अरमन ४२ता थभिक्खू-भिक्षुः' साधु परिव्वएज्जा-परिवजेत्' शुद्ध मे। मयभनु पावन रे ॥१॥ અન્વયાર્થ–મતિમાનું અર્થાત્ કેવળજ્ઞાનથી ચિંત્વન કરીને એટલે કે કેવળ જ્ઞાનથી જાણીને સરળ સમાધિ ધર્મનું કથન કરેલ છે. એ ધર્મનુ શ્રવણ કરે, અહિક-આલેક સંબંધી તથા પારલૌકિક-પરલેક સંબંધી આકાંક્ષાથી રહિત થઈ સમાધિને પ્રાપ્ત કરી છે સંબંધી અરંભ ન કરવાવાળા ભિક્ષ यममा ५२.४२ ॥१॥ ટીકાઈ–મનન કરવું તે મતિ છે, અહિયાં મતિને અર્થ સઘળા પદા For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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