________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १६ विधिनिषेधस्वरूपनिरूपणम् ५६७ यस्य स सममनाः सर्वत्र वासीचन्दनकल्प इत्यर्थः यथा चन्दनं छेदकस्य सुरक्षकस्य च समानं सुगन्धं वितरति तथाऽयं मुनिरपि सर्वत्र समानभावो भवतीति भावः२। 'भिक्खूत्ति वा' भिक्षुरिति वा, निरवधभिक्षणशीलो भिक्षुः । अथवा-भिनत्ति विनाशयति, अष्टपकारकं कर्म यः स भिक्षुः । एवं भामुरगुणगणविशिष्टः साधुभिक्षुरिति वा वाच्या३ । 'णिग्गंथेत्ति वा' निग्रंथ इति वा, बाह्याऽभ्यात ग्रंथाऽ भावात्-निर्ग्रन्या ४ । तदेवमनन्तरपञ्चदशाध्ययनोक्तार्थाऽनुष्ठायी, दान्तो, द्रविको की छाया 'सममनाः' भी होती है। प्राकृतभाषा होने के कारण यहां एक मकार का लोप हो गया है। तात्पर्य यह है कि वह शत्रुओं और मित्रों पर समान भाव रखता है। जैसे चन्दन अपने को छीलने वाले षसूला पर द्वेष नहीं करता, उसी प्रकार वह भी उपसर्गकर्ता पर रुष्ट या द्विष्ट नहीं होता। जैसे चन्दन सब को समान भाव से सुगंध प्रदान करता है, उसी प्रकार यह मुनि भी सर्वत्र समभावी होता है। २ ____ वह मुनि 'भिक्षु' भी कहलाता है। जो निरवद्य भिक्षा ग्रहण करता है, वह भिक्षु कहलाता है। अथवा आठ प्रकार के कर्मों को भेदनेवाला भिक्षु कहा जाता है। एवं भासुर (देदीप्यमान) गुण गणों से युक्त साधु भिक्षु पद का वाच्य होता है। ३
यह मुनि 'निर्गन्ध' भी कहा जाता है। जो बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित हो वह निर्ग्रन्थ है। ४ छाय! 'सममनाः' से प्रभारी ५ थाय छे. आकृत पाथी माडियां એકમકારને લેપ થયેલ છે. તાત્પર્ય એ છે કે તે શત્રુઓ અને મિત્ર પર સરખો ભાવ રાખે છે. જેમ ચંદન વૃક્ષ પિતાને છેલવાવાળા વાંસલા પર દ્વેષ કરતું નથી એજ પ્રમાણે તે ઉપસર્ગ–વિઘ કરનારા પર રોષવાળા અથવા ઠેષ વાળા થતા નથી. જેમ ચંદન બધાને સમાન ભાવથી સુગધ આપે છે, એજ પ્રમાણે આ મુનિ પણ સર્વત્ર સમાન ભાવવાળા હોય છે (૨)
તે મુનિ “ભિક્ષુ' પણ કહેવાય છે, જે નિરવઘ ભિક્ષા ગ્રહણ કરે છે, તે ભિક્ષુ કહેવાય છે. અથવા આઠ પ્રકારના કર્મોને ભેદવાવાળા ભિક્ષુ કહેવાય छ. मेक शत 'भासुर' हेह-यमान गुण समूहाथी युद्धत साधु मिक्षु' ५४ वारय डाय छे. (३)
ते मुनि निय-' ५५ ४ाय छ, २ माघ-१२ भने माय. त२-२ना परियडया हिताय ते निन्य छे. (४)
For Private And Personal Use Only