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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५७ ___ अन्वयार्थः-(तहागया) तथागताः-अपुनरावृत्या गताः मोक्षं माताः (मेहावी) मेधाविनः केवलज्ञानिनः तीर्थकरगणधरादयः (कयाइ) कदाचित्-कस्मिविदर्षि काले (को) कुतः कथं केन प्रकारेण (उप्पज्जति) उत्पद्यन्ते इति भावः (अप्पडिमा) अप्रतिज्ञाः अनिदानाः आशंसारहिताः (तहागया) तथागता तीर्थकरगणधरादयः (अणुत्तरा) अनुत्तरा लोकोत्तरं केवलदर्शनवन्तः (लोगस्स) लोकस्य-जीवसमूहस्य (चक्खू) चक्षुः-चक्षुरिव चक्षुः सदसदर्थप्रदर्शकत्वान्नेत्रभूताः सन्तीति ॥२०॥ प्राप्त 'मेहावी-मेधाविनः' केवलज्ञान वाले तीर्थंकर गणधर आखि 'कयाइ-कदाचित्' किसी भी कालमें 'कओ-कुतः' किस प्रकारसे 'उपज्जति-उत्पद्यन्ते' उत्पन्न होता है ? अर्थात् उत्पन्न नहीं होता है 'अप. डिन्ना-अप्रतिज्ञाः' निदान रहित 'तहागया-तथागताः' तीर्थंकर गणघर आदि 'अणुत्तरा-अनुत्तरा' लोकोत्तर केवलज्ञान और केवल दर्शन वाले 'लोगस्स-लोकस्य' जीवसमूह के 'चक्खू-चक्षुः नेत्रभूत कड़े जाते हैं ॥२०॥ ____ अन्धयार्थ--जो पुनरागमन से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त हुए हैं और मेधावी अर्थात् केवलज्ञानी हैं, वे क्या किसी समय किसी प्रकार जन्म लेते हैं ? अर्थात् उनका कभी पुनर्जन्म नहीं हो सकता। वे सब प्रकार की कामना से रहित, लोकोत्तर केवल-ज्ञान-दर्शन में सम्पन्न तीर्थंकर गणधर आदि जीवों के लिए चक्षुरूप होते हैं अर्थात सत् असत् पदार्थों के प्रदर्शक होने के समान होते हैं ॥२०॥ तो 'मेहावी-मेधावीनः' उपशाना ताय ४२ ४५२ विशेष 'कयाइ-कदाचित्' ६ ५५ णे 'कओ-कुतः' ४या Rथी 'उप्पज्जंति-तपद्यन्ते' 64न्न थाय छ १ अर्थात् ५-न यता नथी. 'अपडिन्ना-अप्रतिज्ञा निसान हित 'तहागया-तथागताः' ती ४२ गधर विगेरे 'अणुत्तरा-अनुत्तराः' सत्त२ 340 शान मने उपर शनवाणा 'लोगस्स-लोकस्य' ७१ सभूलना 'चक्खू-चक्षुः' नेत्र३५ उपाय छे. ॥२०॥ અન્વયાર્થ-જે પુનરાગમનથી રહિત થઈને મોક્ષને પ્રાપ્ત થયા છે. અને મેધાવી અર્થાત્ કેવલજ્ઞાની છે, તેઓ શું કઈ સમયે કઈ પણ પ્રકાર જન્મ ગ્રહણ કરે છે? અર્થાત્ તેઓને પુનર્જન્મ કોઈ પણ વખતે તે નથી. તેઓ બધા પ્રકારની કામનાઓથી રહિત લોકોત્તર કેવળ જ્ઞાન દશા નથી યુક્ત તીર્થકર ગણધર વિગેરે જે માટે નેત્ર રૂપ હોય છે. અર્થાત સત અસત્ પદાર્થોને બતાવવાળા હેવાથી નેત્રરૂપ હોય છે. મારા For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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