________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रकृतशिस्त्रे जरणोपायं च ज्ञपरिज्ञया ज्ञात्वा तत् प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यजति पुनरकरण: तया प्रत्याख्याति । एतेन किं भवतीत्याह-येन कारणेन पापकर्मानाचरणरूपेण पूर्वकनकर्मक्षपणरूपेण च स मुनिः 'न जायई' न जायते संसारे नोत्पद्यते न जन्म गृह्णाति 'न मिज्जई' न म्रियते न वा मृत्यु प्राप्नोति तस्याग्रे मोक्षसद्भावात, स. जन्मजरामरणविप्रमुक्तो भूत्वा सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं माप्नोतीति भावः ॥७॥ मूलम्-ण मिज्जई महावीरे जस्स नत्थि पुरे कडं ।
वाउठव जाल मच्चेति पियालोगसि इथिओ॥८॥ छाया-न म्रियते महावीरो यस्य नास्ति पुरा कृतम् ।
वायुरिव ज्वाला मत्येति प्रिया लोके स्त्रियः ॥८॥
अर्थात् पुनः न करने की प्रतिज्ञा करके प्रत्याख्यान कर देता है। ऐसा करने से क्या होता है ? पापकर्मों का आचरण न करने से तथा पूर्व कृत कर्मों का क्षय कर डालने से वह मुनि न संसार में जन्मता है, न मृत्यु को प्राप्त होता है । उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है । वह जन्म जरा मरण से सर्वथा मुक्त होकर सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त कर लेता है ॥७॥ ... 'ण मिज्जई महावीरे' इत्यादि । ' शब्दार्थ-- 'जस्स-यस्य' जिसको 'पुरेकडं-पुराकृतम्' पूर्वभवो. पार्जित कर्म 'नस्थि-नास्ति' नहीं है ऐसा वह 'महावीरे-महावीर पुरुष 'ण मिज्जई-न म्रियते' मरता नहीं है तथा उपलक्षण से जन्मता भी नहीं है अर्थात् जन्म मरण से मुक्त होता है कारणकी वह 'लोगंसिશું થાય છે? પાપકર્મોનું આચરણ ન કરવાથી તથા પહેલાં કરેલા કર્મોને ક્ષય કરી નાખવાથી તે મુનિ સંસારમાં જન્મ ધારણ કરતા નથી તેમ મૃત્યુ પણ પામતું નથી. તેને મેક્ષ પ્રાપ્ત થઈ જાય છે? તે જન્મ, જરા અને મરણથી સર્વથા મુક્ત થઈને સિદ્ધિ ગતિ નામના સ્થાનને પ્રાપ્ત કરી લે છે. શા
'ण मिज्जइ महावीरे' त्या
शहाय-'जस्स-यस्य' ने 'पुरेकडं-पुराकृतम्' पूवात भनत्थि-नास्ति' नयी मेव। 'महावीरे-महावीरः' मडावी२ ५३५ 'न मिजई-न म्रियते' भरत नथा. तथा ५RYथी मत। ५५५ नथी. अर्थात् बम भ२४थी भुत थाय छे. ४॥२५ ते 'लेगसि लोके' मा पिया
For Private And Personal Use Only