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सूत्रकृतामले अन्वयार्थः-या घातिकर्मचतुष्टयान्तकस्वेन (वितिगिच्छाए) विचिकित्सायाः संशयविपर्ययमिथ्याज्ञानरूपायाः (अंतए) अन्तको विनाशको भवति (से) स. (मणेनिस) अनीदृशम्-अनन्यसदृशं धर्म (जाणइ) जानाति । यः अनीदृशस्य माता भवति स एव (अणेलिसस्स) अनीशस्य अनन्यसदृशस्य धर्मस्य (अक्खाया) आख्याता कथयिता भवति । एतादृशः (से) सः महापुरुषः (तहि तKि) तत्र तत्र बौद्धादिदर्शने (ण होइ) न भवति, अनीदृशस्याज्ञायकत्वादिति ।।२०।।
'अंत' इत्यादि।
शब्दार्थ-जो चारों प्रकार के घातिया कर्म का नाश करने वाले होने से वितिगिच्छाए-विचिकित्सायाः मिथ्याज्ञान रूप संशयविपर्यय का 'अंतए-अन्तकः' नाशकरने वाले होते हैं 'से-सः वह 'अणेलिसं -अनीदृशम् अनन्य साधारण ऐसे धर्म को 'जाणइ-जानाति जानते है 'अणेलियस्स-अनीदृशस्य' जो पुरुष सबसे अधिक वस्तुतत्वका 'अक्खाया-पाख्याता' कथन करने वाले हैं ऐसा 'से-स:' वह पुरुष 'तहि तहि-तत्र तत्र' ऊस ऊस बौद्धादि दर्शनों में 'ण होह-न भवति' महीं होता है । २॥
. अन्वयार्थ-जो चारों घातिकर्मों का अन्त करने वाला होने के कारण विचिकित्सा अर्थात् संशय, विपर्यास रूप मिथ्याज्ञान का अना करने वाला है, वह अनन्यसदृश-अनुपम-धर्म को जानता है। जो अनन्यसदृश धर्म को जानता है, वही अनन्यसदृश धर्म का प्रतिपादक होता है । ऐमा पुरुष बौद्ध आदि अन्य दर्शनों में नहीं होता ॥२॥
अंतर' त्याल,
શબ્દાર્થ-જેએ ચારે પ્રકારના ઘનિયા કમેને નાશ કરનારા હોવાથી 'वितिगिच्छाए-विचिकित्स.याः' मिथ्याज्ञान ३५ सय विषय यन। 'भंतएअन्तकः' नाशपणा डाय छे. 'से-सः' ते 'अणेलिसं-अनीहशम्' मनन्य साधारण सामने 'जाणइ-जानाति' ले छे. 'अणेलियस्म-अनीदृशस्य' २ ५३५ सथी पधारे वस्तुतत्पनु 'अक्खाश-पाख्याता' 3थन ४२वावा छे. मेवो 'से-सः' ते ५३५ "तहि तहि-तत्र तत्र' ते माद्ध विगेरेना शनामा 'ण होइ-न भवति' हात नथी ॥२॥
અન્વયાર્થ–જે ચારે ઘાતિયા કર્મોના અંત કરવાવાળા હોવાથી વિચિકિત્સા અર્થાત સંશય વિપર્યાસ રૂપ મિથ્યાજ્ઞાનને અંત કરવાવાળા છે. તે અનન્ય સદશ-અનુપમ ધર્મને જાણે છે. જેઓ અનન્ય સદશ ધર્મને જાણે છે. તેજ અનન્ય સદશ ધર્મના પ્રતિપાદક હોય છે. એ પુરૂષ બૌદ્ધ વિગેરે અન્ય દશકમાં હોતા નથી, પર
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