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सूत्रकृताङ्गसूत्र मतिमासम्पमा शास्त्रार्थप्रतिपादकश्च भवति । तथा सम्यग्ज्ञानाधर्थी तपः संयमों माय विशुद्धाहारेण शरीरयात्रा निर्वहन् मोक्षगामी भवतीति भावः ॥१७॥ मलम्-संखाइ धम्मं च वियागरंति,
बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति। ते पोरगा दोह वि मोयणाए,
संसोधियं पह मुंदाहरंति ॥१८॥ छाया-'संख्यया धर्मच न्यागृणन्ति; बुद्धा हु तेऽन्तकरा भवन्ति ।
ते पारगा द्वयोरपि मोचनाय, संशोधितं प्रश्नमुदाहरन्ति ॥१८॥ करके प्रतिमा सम्पन्न और शास्त्र के अर्थ का प्रतिपादक हो जाता है। सम्यग्ज्ञानादि का अर्थी होकर तप और संयम को प्राप्त करके विशुद्ध
आहार से शरीर निर्वाह करता हुआ मोक्षगामी होता है ॥१७॥ . अब गुरूकुलवासियों का धर्म कहते हैं-'संखाइ धम्मंच' इत्यादि।
शब्दार्थ-'धम्मच-धर्मश्च' श्रुतचारित्र लक्षण धर्म को 'संखाइसंख्याय' सदबुद्धिसे स्वयं धर्म को जानकर के दूसरे को 'वियागरंतिभ्यागृमन्ति' उपदेश करते हैं 'ते-ते' इस प्रकार के वे साधु 'बुद्धाहु
बुद्धा' तीनों कालके ज्ञाता होने से 'अंतकरा-अन्तकरा' सकल कर्म को विनाश करने वाले 'भवंति-भवन्ति' होते है ते-ते' यथावस्थित धर्म का प्रतिपादन करनेवाले 'दोहवि-बयोपि' आने और दूसरे के 'સાંભળીને પ્રતિભા સંપન્ન અને શાસ્ત્રના અર્થને પ્રતિપાદન કરવાને સમર્થ બની જાય છે. સમ્યક્ જ્ઞાન વિગેરેની કામના વળે થઈને તપ અને સંય. મને પ્રાપ્ત કરીને વિશુદ્ધ આહારથી શરીરને નિર્વાહ કરતો કે મેક્ષગામી થઈ જાય છે. ૧૭ - હવે ગુરૂકુળમાં વાસ કરનારાઓના ધર્મનું પ્રતિપાદન કરવા માટે "खाइ धम्म च' त्या पायानु ४थन ४२वामा माछ.
शहा - 'धम्मंच-धर्म'च' श्रुतयारित ३५ धन संखाइ-सख्याय' सई भुद्धिया पाते Mela भीमाने 'विय.गर ति-व्यागृणन्ति' उपदेश ४२ छ. 'ते-वे' मा ४२ना साधु 'बुद्धा हु-हुः बुद्धा' 0 मने angalol
पाथी 'अंतकरा-अम्तकराः' मना विनाश ४२१॥ वाणा भवंति-भवन्ति' पाय छे. 'वे-ते' यथास्थित धमनु प्रतिपाइन ४२११॥ दोहवि-द्वयोरपि'
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