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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्र. अ. १३ याथातथ्यस्वरूपनिरूपणम् सओय धम्मं असओय सील', 'संतिं असंति करिस्सामि पाउं॥१॥ छाया-पाथातथ्यं तु प्रवेदयिष्यामि, ज्ञानप्रकारं पुरुषस्य जातम् । सतश्च धर्ममसतश्च शील, शानिमशान्ति च करिष्यामि मादुः ॥१॥ अन्वयार्थः-आहत्तहीयं तु) याथातथ्यं तु-परमार्थतत्त्वं तु 'पुरिसस्स' पुरुषस्य जीवस्य यत् (जाय) जातम्-उत्पन्नम् (नाणपगारं) ज्ञानप्रकारम्-ज्ञाना शब्दार्थ-'आहत्तहीयं तु याथातत्थं तु' यथार्थ अर्थात् सच्चा तत्व 'पुरिसस्स-पुरुषस्य' जीव को जो 'जायं-जातम्' प्राप्त हुवा है तथा 'नाणप्पकार-ज्ञानप्रकारम्' ज्ञानके प्रकार अर्थात् सम्यक ज्ञान दर्शन और चारित्रका 'पवेयहस्सं-प्रवेदयिष्यामि' कथन करूंगा 'तु' शब्द से मिथ्यादृष्टियों के दोषों को भी कहूंगा 'सओ यसतश्च' चारित्रशील उत्तम साधुका 'धम्म-धर्मम्' श्रुतचारित्ररूप धर्म तथा 'सीलं-शोलम्' शील-स्वभाव तथा 'संति-शान्तिम्'सकल कर्मक्षयरूप शान्तिको-निवृत्तिको 'पाउं करिस्सामि प्रादुः करिष्यामि' प्रकट करूंगा तथा 'असओ य-असतश्च' परतीर्थिकों का, अधर्माचरण, कुशील तथा 'असंत-अशान्तिम्' संसार का स्वरूप प्रगट करूंगा ॥१॥ अन्वयार्थ-- परमार्थ दृष्टि से विचार करने पर जीव को वास्तविक रूप में उत्पन्न होने वाले सम्यग् ज्ञान सम्यग दर्शन सम्यक चारित्र शहाय-भाहत्तहीयं तु-याथातथ्य तु' यथार्थ अर्थात् सायु-तत्व 'पुरिसस्त्र-पुरुषस्य' ने 'जाय-जातम्' प्रात येत छे तथा 'नाणपकार -ज्ञानप्रकारम्' ज्ञानना ta अर्थात् सन्यज्ञान, शन अने यात्रि 'पवेयइस्स-प्रवेदयिष्यामि ४थन ४५ 'तु' श५४थी मिथ्यापाहियोना होषाने ५ ४ीसओय-सतश्च' यात्रिशीर उत्तम साधुना 'धम्म-धर्मम्' श्रुत यारित ३५ घम' तथा 'सील-शीलम्' शीव-२१ला मने संति-शान्तिम्' सस भक्षय३५ शान्तिन-निवृत्तिन पाउकरिस्सामि-प्रादुः करिष्यामि' पट शश तथा 'असओ य-असतश्च' ५२तीथीना अपायरने तथा 'असंति: अशान्तिम्' ससाना २१३५ने प्रगट ४२१२२ ॥१॥ અન્વયાર્થ–પરમાર્થ દષ્ટિથી વિચારતાં જીવને વારતવિક પણુથી ઉત્પન્ન થવાવાળા સમ્યક્ જ્ઞાન સમ્યક્દર્શન સમ્યક્ ચારિત્રરૂપ જ્ઞાન પ્રકારનું નિરૂ For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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