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सूत्रकृताङ्ग सूत्रे
अन्वयार्थ:- (पुढची क अगणी वाऊतणरुक्खसवीयगा) पृथिव्यवग्निवायु तृणवृक्षाः सवोजकाः (अंडया पोयजराऊ) अण्डजाः पोतजाः जरायुजाः (रससंसेउमिया) रससंस्वेदोद्भिज्जाः, ये जीवाः सन्ति ||८||
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टीका - स एवं संसारात्मत्रजितोऽवहितात्मा हिंसादिवतेषु प्रमादं न करोति, तत्र के हिंसा ? केषां वा हिंसनं भवतीत्यत आह- 'पुडवी क' पृथिव्यापः पृथिवीकायिकाः सूक्ष्मवादरपर्याप्तकाऽपर्याप्तकादिभेदमिकाः, अष्कायिकाः, 'अगणी' अग्निकायिकाः 'वाऊ' वायुकाविकाः, एवं भूता विविधा जीवाः । तथा-वन
निर्वायुस्तृणवृक्षसबीजका' पृथिवी, अग्नी, वायु, तृण, वृक्ष, और बीज अंडया पोयजराउ - अंडजाः पोतजाः जरायुजाः' अण्डज, पोतज तथा जरायुज 'रससंसेउभिया-रस संस्वेदोद्विजाः' रसज, स्वेदज, और उद्भिज्ज (ये सब जीव हैं ) ॥८ ॥
अन्वयार्थ -- पृथ्वीकायिक अपकाधिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, तृण, वृक्ष, बीज, अंडज, पोतज जरायुज, रसज, संस्वेदज और उभि उसे ये सब जीव है । यतना के साथ इनकी रक्षा करनी चाहिए ||८||
टीकार्थ - - संसारसे प्रत्रजित और यतनावान् मुनि अहिंसा आदि ती में प्रमाद नहीं करता है । तो हिंसा क्या है ? और किनकी हिंसा होती है? इन प्रश्नका उत्तर देने के लिए कहते हैं- सूक्ष्म, बादर, पर्याक, अपर्यातक आदि भेद प्रभेद वाले पृथ्वी कायिक जीव हैं। इसी कार भेदोंवाले अप्रकायिक तेजस्कायिक और वायुकायिक भी हैं। वन
वृक्ष बीज का : ' 'पृथ्वी, अग्नि, वायु, तृयु, वृक्ष भने जी 'अंडया पाय जरायुअंडजाः पोटजाः, जरायुजाः' म पतन भने यु 'रस संसेयउभियारससंस्वेदोद्भिङ्गाः' २५०४, स्पेन, भने सिन (आ तमाम त्र छे.) ॥८॥
अन्वयार्थ - पृथ्वी, गाय, ते साय, वायुठाय तृणु, वृक्ष, पीत्र, सडक, पोतन ४यु, रस, संस्वेदन भने उहूमिन मा अधा જીવા છે, યતનાપૂર્વક તેઓનું રક્ષણ કરવું જોઈએ. ૮ાા
ટીકા સ સારથી પ્રત્રજીત અને ચતનાાત્ મુનિ અહિંસા વિગેરે કઞામાં પ્રમાદ કરતા નથી, હિંસા એ શું છે ? અને કૈાની ...િસા થાય છે ? આ પ્રશ્નોના ઉત્તર આપતા કડે છે કે-સૂક્ષ્મ, ખાદર, પર્યાપ્ત ગેિરે ભેદ પ્રભેદવાળા પૃથ્વીકાયિક જીવા છે, આજ પ્રકારના ભેદોવાળા અાયિક તેજ સાયિક અને વાયુ કાયિકા પણ હાય છે. વનસ્પતિ કાયિકાને સક્ષેપથી
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