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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ९ धर्मस्वरूपनिरूपणम् ___ अन्यार्थः- (वित्तं च पुत्ते य) वित्तं-द्रव्यजातं पुत्रांश्च त्यक्त्वा 'य गारो परिगह) च-पुनः ज्ञातीन पग्रिहम् एवं (गणंतर्ग) अन्तगम् (सोयं) शोकं (चिचा)
त्यक्ता-परित्य य (नि: वेकको परिचए) निरपेक्ष-पुत्रदारादिश्मनपेक्षमाणः परिव्रजेत् आमोक्षाय संवानुष्ठाने बजेविति ॥७॥
टीका-- वित्त वित्तम्-धनधान्यहिचुवर्णाविशम् , तथा-'पुत्ते य' पुत्रांच पुत्रेषु सर्मापेक्षयाऽधिकः स्नेहो दृश्यते-'म नापत्यसमः स्नेहः' इति नियमाव
'चिच्या वित्तं च पुत्ते य' इत्यादि।
शब्दार्थ-वित्तं च पुत्ते श-विसंग पुश्च' धन और पुगेको 'य गाइओ परिगह-च ज्ञातीन् परिग्रहम् तथा ज्ञातिवर्ग और परिग्रहकी 'चिच्चा-त्या त्यागकर णणन्तर्ग सोयं-अनन्नगं शोलम्' तथा सीतरके तापको 'चिच्चा-त्यक्त्वा' छोड़कर निश्वेश्वो परिरुपए-निरपेक्षा परिव्रजेत्' मनुष्य निरपेक्ष होकर संपनका अनुष्ठान करे ॥७॥ ____अन्वयार्थ--साधु वित्तको, पुत्रों को, ज्ञातिजनों को और परिग्रह को त्याग कर तथा दुस्त्यज शोकको त्याग कर किसी भी सांसारिक पदार्थ की अपेक्षा न रखता हुआ-आत्मा में ही लीन होकर संयम के अनुष्ठान में लगा रहे ॥७।
टीका --साधु वित्त अर्थात् धन, धान्य, हिरण्य, स्वर्ण आदि) त्याग दे । पुत्रों को भी त्याग है। मनुष्यका अपने पुत्रों पर सब से अधिक
'चिच्चा वित्तं पुत्ते य' या शहा- 'वित्तं च पुत्ते य-वितं च पुत्रांश्च' धन भने पुत्राने 'य णाइओ. परिगह-च ज्ञातीन् परिग्रहम्' तथा ति मने परिखने 'चिच्चा-त्यक्त्या' 'णणंतगं सोयं-अनन्तगं शोकम्' तथा अ६२न तापने 'चिच्चा-त्यक्त्वा' छ. अन 'निरवेक्खो परिव्वए-निरपेक्षः परिव्रजेत्' भनुष्य निरपेक्ष अपेक्षा विनानी ने સંયમનું અનુષ્ઠાન-પાલન કરે છે
અન્વયાર્થ સાધુએ વિત્તને, પુત્ર, જ્ઞાતિ જનોને અને પરિગ્રહને ત્યાગ કરે જોઈએ. તથા ન ત્યજાય એવા શકને ત્યાગ કરીને, સંસારિક કઈ પણ પદાર્થની ઈચ્છા રાખ્યા શિવાય આત્મામાં લીન થઈને સંયમના मनु०४ानमi all २३ ॥७॥
टी -साधु वित्त-मया धन, धान्य, &ि२९य, २१५-यही विमेंરેને ત્યાગ કરી, દે મનુષ્યને પિતાના પુત્ર ઉપર સૌથી વધારે પ્રેમ જોવામાં
सू० ३
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