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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ११ मोक्षस्वरूपनिरूपणम् मूलम्-एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्टी अणारिया। विसएसणं झियायंति, कंका वा कलुसाहमा ॥२८॥ छाया- एवं तु श्रमणा एके मिथ्यादृष्टयोऽनारीः। विषयैषणं ध्यायन्ति, कङ्का इव कलुषाधमाः ॥२८॥ अन्वयार्थः-(ए तु) एवम्-अमुना प्रकारेण तु (मिच्छट्ठिी अणारिया) मिथ्याष्टयोऽनार्याः (एगे समणा) एके श्रमणाः शाक्यादयः (विसएसणं झिया. यंति) विषयैषणं शब्दादीनां प्राप्तिरूपं ध्यायन्ति ते (कंका वा कलुसाइमा) कङ्का:कङ्कादिपक्षिण इव कलुषाधमा:-कल्पामध्यानध्यायिनो भवन्तीति ॥२८॥ टीका-'एवं तु' एवं तु-यथा कङ्कादय आरौद्रध्यानं ध्यायन्ति तथा "मिच्छविट्ठी' मिथ्यादृष्टयः 'अणारिया' अनार्या:-आरम्भपरिग्रहवत्त्वात् 'एगे एके 'एवं तु समणा एगे' इत्यादि। शब्दार्थ--'एवंतु-एवं तु' इसी प्रकार 'मिच्छदिट्टी अणारिया-मिथ्या दृष्टयोऽनार्याः' मिथ्या दृष्टी और अनार्य 'एगे समणा-एके श्रमणा' कोई श्रमण 'विसएसणं झियायंति-विषयैषणं ध्यायन्नि' विषय प्राप्ति का ध्यान करते हैं 'कका वा कलुसाहमा-कङ्का व कलुषाधमाः' वे कंक पक्षीके जैसे पापी एवं अधम प्रकार का है ॥२८॥ . अन्वयार्थ ---इसी प्रकार कोई कोई मिथ्पादृष्टि अनार्य श्रमण शाक्यादि विषयैषणा अर्थात् कामभोगों की प्राप्तिका ध्यान करते रहते हैं। वे केक पक्षी के समान कलुषित और अधम होते हैं ॥२८॥ टीकार्थ--जैसे कंक आदि पक्षी आर्त रौद्र ध्यान करते हैं, उसी ‘एवंतु समणा एगे' त्यादि शा--एवं तु-एव तु' मा प्रमाणे 'मिच्छ हद्वीअणारिया-मिथ्या दृष्टयो अनार्याः' मिथ्या पाणा भने मानाय सेवा 'एगे समणा-एके श्रमणाः' 15 ५५ 'विसएसणं झियायति-विषयेषणं ध्यायन्ति' विषय प्रासिन यान ४२ छ. कंकावा कलुम्राहमा-कङ्का इव कलुषाधमाः' तेगा पक्षिनी જેમ પાપી અને અધમ કેટિના છે. ૨૮ અન્વયાર્થ–આ જ પ્રમાણે કઈ કઈ મિથ્યા દૃષિ અનાર્ય શ્રમણ શાળ્યાદિ વિષષણ અર્થાત્ કામભેગની પ્રાપ્તિનું ધ્યાન કરતા રહે છે. તેઓ કંક પફિની જેમ કલુષિત તથા અધમ હોય છે ૨૮ ટીકાર્ય–જેમ હેક કંક વિગેરે પક્ષિયે આર્ત અને રૌદ્ર ધ્યાન કરે છે, For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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