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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. म. ११ मोक्षस्वरूपनिरूपणम् मलम्-उर्दू अहे य तिरियं, जे केइ तसथावरा। सव्वत्थ विरतिं कुजा, संति निव्वाणमाहियं ॥११॥ छाया-ऊर्ध्वमधस्तियंग ये केचित् सस्थावराः । सर्वत्र विरतिं कुर्यात्, शान्तिनिर्वाणमाख्यातम् ॥११॥ अन्वयार्थः- (उच् अहेयतिरिय) ऊर्ध्वमस्तिर्यक् (जे केइ तसथावरा) ये केचन सा द्वीन्द्रियादयः स्थावरा:-पृथिव्यादयो जीवाः सन्ति (सम्वत्थ विरति कुन्जा) सर्वत्र-प्राणिसमुदाये विरति-प्राणातिपातनिवृत्ति कुर्यात् (संतिनिघाणमाहिय) इत्थं कुर्वत एव शान्तिनिर्वाण च-मोक्षो भवतीति आख्यातकथितमिति ॥११॥ 'उड़ अहे य तिरियं' इत्यादि । शब्दार्थ--'उड़ अहे य तिरियं-ऊर्ध्वमस्तिर्यक्' ऊपर नीचे और तिरछा 'जे केह तसथारा-ये केचन बसस्थावराः' जो उस और स्थावर प्राणी है 'सव्वस्थ विरति कुज्जा-सर्वत्र विरनि कुर्यात्' सर्वत्र उनकी हिंसासे निवृत्त रहना चाहिये 'संति निवाणमाहियं-शान्ति. निर्वाणमाख्यातम्' इस प्रकार से जीव को शान्तिमय मोक्ष की प्राप्ति कही गई है कारणकि विरतिमान् से कोई डरता नहीं हैं । ११॥ अम्बयार्थ-ऊँची नीची और तिर्की दिशाओं में जो प्रस और स्थावर प्राणी हैं, उन सब में प्राणातिपात की निवृत्ति करनी चाहिए। ऐसा करने वाले को ही मोक्ष की प्राप्ति कही गई है ॥११॥ 'उड़ अहे य तिरिय' त्यादि ___शाय-'उड्ढे अहे य तिरिय-ऊर्ध्वमस्तिर्यक्' ५२ नीये भने त२७॥ 'जे केइ तसथावरा-ये केचन त्रस स्थावराः' - स भने स्था१२ प्रालि 'सव्वत्थ विरति कुज्जा-सर्वत्र विरतिं कुर्यात्' तेमनी साथी सर्वत्रप्रारथी निवृत्त २j स. संति निव्वाणमाहियं शान्तिनिर्वाणमाख्या. તમ્' આ રીતે જીવને શાતિમય મેક્ષ પ્રાપ્તિ કહી છે. કારણ કે વિરતિયુક્ત પુરૂષથી કેઈ ડરતું નથી. ૧૧ા અન્વયાર્થ_ઉચ, નીચી. અને તિરછી દિશાઓમાં જે ત્રસ અને સ્થાવર પ્રાણિ છે, તે બધામાં પ્રાણાતિપાતની નિવૃત્તિ કરવી જોઈએ. એમ કરવાવાળાને જ મોક્ષની પ્રાપ્તિ કહી છે. ૧૫ For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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