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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६५६ www.kobatirth.org सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थ : - ( माथिको माया य कटु) मायिनः- परवश्चकाः मायाश्र कृत्वा ( कामभोगे समारभे ) कामभोगान् शब्दादिविषयरूपान् समारभन्ते कुर्वन्तिसेवन्ते, -तथा-(आयसायाणुगामिणो ) आत्मसातानुगामिनः स्वीयमुखमि च्छन्तः (हंता) हन्तारः (छत) छेतारः (विधवा) कर्तविवारी भरतीति ॥५॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टीक - 'माइणो' मानि माया परमासाद्य येते मानि 'माया' मयाः 'कट्टु' कृता- परधनवनितादिभ्म् अपहृत्य 'कामभोगे' -- 'मायिणो कट्टु' इत्यादि । शब्दार्थ - 'माथिणो माया य कट्टु-माथिनः मागाव कुम्या' माया करनेवाले पुरुष माया अर्थात् छल कपट करके 'कामभोगे समारभेकामभोगान् समारभन्ते' कामभोगों का सेवन करते हैं 'आघाताणुगामिणो आत्मसातानुगामिनः' तथा अपने सुबकी इच्छा करनेवाले वे 'हंता - हन्तार:' प्राणियों का हनन करनेवाले 'छेसा- छेतारः' छेदन करनेवाले 'पति-प्रकर्तयितारः' और कर्तन करनेवाले होते हैं ॥५॥ अन्वयार्थ - मायावी लोग मायाचार करके शब्दादि विषयरूप कामभोगों का सेवन करते हैं। ये अपने सुख की इच्छा करते हुए जीवों का हनन करते हैं, छेदन करते हैं और विदारण- कर्त्तन करते हैं ॥५॥ टीकार्थ- माया का सेवन करनेवाले माधी (कपटी) या मायावी कहलाते हैं। ऐसे मायावी जल मात्रा करके पराये घन स्त्री आदिका ' मायिणो कट्टु ' त्याहि शब्दार्थ - मायिणो माया य कटु-मायिनः माया कृत्वा ' मायाच श्वावाजा पु३ष भाया अर्थात् छरी ने 'कामभोगे समारभे - कामभोगान् समारमन्ते' अभलोगो सेवन उरे छे. 'आयस्राताणुगामिणो - आत्मशातानुगामिनः ' तथा पोताना सुमनी इच्छा वा वाणा येथे 'हंता - हन्तारः' प्रायेोतुं डेनन उदवा वाणा छेत्ता- छेतारः' छेहन उरवावाला 'पगन्भिता - प्रकर्त्तयितारः' અને ન કરવા વાળા હાય છે. પા અન્વયા—માયાવી લેકે માયાચાર કરીને શબ્દાદ્રિ વિષય રૂપ કામલેગેાનું સેવન કરે છે. તેએા પેાતાના સુખની ઇચ્છા કરીને અન્ય જીવાની હિંસા કરે છે, છેદન કરે છે, અને વિદ્યારણ-કન્તન કરે છે. ૧ ટીડાથ માયાનું સેવન કરવાવાળા માયી (કપી) અથવા માયાવી કહેવાય છે. એવા માયાવી માણસે માયા કરીને પારકા ધન સ્ત્રી વગેરેનુ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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