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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१८ मूलम् - जोहेसुं गाए जह बीससेणे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतानं सूत्रे पुप्फेसु वा जेह अरविंद मेहु | खेत्तीण सेट्टे" जंह दैतवक्के, इसी सेट्टे" तेंह वैद्धमाणे ॥ २२॥ छाया - योधेषु ज्ञातो यथा विश्वसेन, पुष्पेषु वा यथाऽरविन्दमाहुः । क्षत्रियाणां श्रेष्ठो यथा दान्तवाक्यः, ऋषीणां श्रेष्ठ स्तथा वर्षमानः । २२ । आन्वयार्थः - (जह 1 ) यथा - ( जाए) ज्ञातो जगत्प्रसिद्ध: (बीससेणे) विश्वसेनः (जोहेसु) योधेषु श्रेष्ठः (जहा) यथा वा (पुप्फे ) पुष्पेषु (अरविंदमाहु) अरविन्दम् 'जोहेसु णाए' इत्यादि । शब्दार्थ- 'जहा - पथा जैसे 'णाए ज्ञातः' जगत प्रसिद्ध 'बीस सेणेविश्वसेनः, विश्वसेन 'जोहेसु-पोद्वेषु' योद्धाओं में 'सेहे श्रेष्ठ' श्रेष्ठ है 'जहा - यथा' जैसे 'पुष्फेसु-पुष्पेषु' पुब्दों में 'अरविंदमाहु-अरविंदम् आहुः' कमलको प्रधान कहते हैं 'जहा -यथा' जैसे 'खत्तीणंक्षत्रियाणां क्षत्रियों के मध्य में 'दंतवक्के सेट्ठे-दान्तवक्यः श्रेष्ठ: ' दान्तवाक्य- चक्रवर्ती श्रेष्ठ है 'तह तथा' इसीप्रकार 'इसीण ऋषीणां' ऋषियों में 'वद्धमाणे सेट्टे-वर्द्धमानो श्रेष्ठ : वर्द्धमान महावीर स्वामी ही श्रेष्ठ है ||२२|| अन्वयार्थ - जैसे योद्धाओं में जगप्रसिद्ध विश्व सेन चक्रवर्ती श्रेष्ठ है जैसे पुष्पों में कमलपुष्प प्रधान है अथवा जैसे क्षत्रियों में दान्तवाक्य चक्रवर्ती श्रेष्ठ है, उसी प्रकार ऋषियों में वर्द्धमान महावीर श्रेष्ठ हैं ॥२२॥ For Private And Personal Use Only 'जो सुनाए ' शब्दार्थ-'जहा-यथा' ? प्रभाये 'णाए - ज्ञातः' ४ प्रसिद्ध 'वीससेणे - विश्वसेनः ' विश्वसेन थडवत 'जोहे सु- योद्धेषु' योध्धायां 'सेट्टे श्रेष्ठः' श्रेष्ठ छे भने 'जहा - यथा' ? प्रभाये 'पुप्फेसु-पुष्पेषु' पुण्याम 'अरवि ंद माहु - अरविन्दम् आहु: ' उभजने प्रधान देशमां आवे छे. 'जहा - यथा'ने प्रमः ये 'खत्तींग - क्षत्रियाणां ' क्षत्रियामां 'दंतवक्के सेट्ठे - दान्तवाक्यः श्रेष्ठः ' हांतवास्य यवर्ती श्रेष्ठ छे. 'तह - तथा' मे प्रभा 'इसीण - ऋषीणां' ऋषियोमा 'वद्धमाणे सेहे - वर्धमानो श्रेष्ठः ' वर्द्धमान महावीर स्वामी श्रेष्ठ छे. ॥ २२ ॥ સૂત્રા—જેમ યે।દ્ધાએ માં જગતવિખ્યાત વિશ્વસેનને શ્રેષ્ઠ ગણવામાં આવે છે, જેમ પુષ્પમાં કમળને શ્રેષ્ઠ ગણુવામાં આવે છે, જેમ ક્ષત્રિયા માં
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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