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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रे. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् १९ मूलम्-से पव्वए सदमहप्पगासे विरायती कंचणमहवन्ने। अणुत्तरे गिरिसु य पवदुग्गे गिरिवरे से जलिए व भीमे॥१२॥ छाया-स पर्वतः शब्दमहासकाशो विराजते काञ्चनमृष्टवर्णः । ___अनुत्तरो गिरिषु च पर्वदुर्गों गिरिवरः स ज्वलित इव भौमः ॥१२॥ अन्वयार्थः-- (से पन्चए) स पर्वतो मेरुः (सहभहप्यगासे) शब्दमहापकाश:शब्दै महान् प्रकाश:-प्रसिद्धि यस्य सः (कंचणमट्ठवन्ने) काञ्चनमृष्टवर्ण:-घर्षित सुवर्णवद्वर्णवान् (अणुत्तरे) अनुत्तर:-सर्व प्रधानः (विरायती) विराजते-शोमते, (गिरिसु य पन्चदुग्गे) गिरिषु च पदुर्ग:- पर्वभि मेंखलादिभिः दुरारोहा ‘से पन्धए' इत्यादि। शब्दार्थ- से पच्चए-स पर्वतः' वह पर्वत 'सहमहापगासे-शब्द महाप्रकाशः' अनेक नामों से अति प्रसिद्ध है 'कंचणमट्टवण्णे-काञ्चनमृष्टः वर्ण:' घर्षितसुवर्ण के जैसा शुद्ध वर्णवाला 'अनुत्तरे-अनुत्तरः' सबपर्वतों में श्रेष्ट 'विरायती-विराजते' और सुशोभित है 'गिरिसु य पव्वदुग्गेगिरिषु च पर्वदुर्ग.' वह सभी पर्वतों में उपपर्वतों के द्वारा दुर्गम है 'से गिरिवरे-असोगिरिवरः' वह पर्वत श्रेष्ट 'भोमेव जलिए-भौमइव ज्वलितः' मणि और औषधियों से प्रकाशित भूप्रदेश के जैसा प्रकाशित रहता है ॥१२॥ ___ अन्वयार्थ-सुमेरु पर्वत शब्दों से महान प्रकाश वाला अर्थात् प्रसिद्ध है। सुवर्ण के समान वर्णवाला है । सर्वश्रेष्ठ होकर शोभायमान 'से पव्वए' त्या शाय-से पव्वए-स पर्वतः' ते ५६ त 'सदमहापगासे-शब्दमहाप्रकाशः' मन नी मयत प्रसिद्ध छे 'कंचगमवण्णे-काञ्चनमृष्ट वर्णः' यति साना सरमा शुद्ध जो 'अणुत्तरे-अनु तरः' मा ४ ५ i Sत्तम 'विरायतीविराजते' भने सुमित छ. 'गिरिसु य पव्वदुग्गे-गिरिषु च पर्वदुर्ग' ते मार पवतामा ५५ तो २ म छ. 'से गिरिवरे-असौ गिरिवरः' ते ५'त श्रेष्ठ 'भोमे जलिर-भौंम इव ज्वलितः' माण भने भोपाधियोथी शित ભૂપ્રદેશ સર પ્રકાશિત રહે છે. ૧૨ સૂવા–તે સુમેરુ પર્વત અનેક શબ્દ (નામ) વડે સુપ્રકાશિત (પ્રખ્યાત) છે. સુવર્ણના જેવાં વર્ણવાળે છે અને સર્વશ્રેષ્ઠ પર્વત રૂપે સુવિ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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