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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ सूत्रकतासूत्र स्पर्शपभादिगुणैरुपेतः, (विरायए) विराजते, यथा सुरालयोऽनेकगुणैरुपेतो विराजते, स च स्वासिनां सर्वदेव आनन्दकरः तथा-भगवानपि सर्वगुणसम्पन्नः सर्वजीवानामानन्दकरः ॥९॥ ___ष्टान्तभूतमेरुवर्णनाय पाह-(सयं) इत्यादि मूळम्-'सयं सहस्साण उ जोयेणाणं, तिकंडेंगे पंडगेवेजयंते। से जोयणे णवणवइसहस्से, उद्धस्सिओ हेतु सहस्समेग।१०। छाया-शतं सहस्राणां तु योजनानां त्रिकण्डकः पण्डकवैजयन्तः। ___स योजनानि नवनवतिसहस्राणि ऊर्ध्वमुच्छ्रितोऽधः सहस्रमेकम्॥१०॥ होता है उसी प्रकार भगवान् सघ को प्रमोद देनेवाले तथा अनेक गुणों से विभूषित होकर विराजमान हैं। तात्पर्य यह है कि जैसे सुरालय अनेक गुणों से युक्त होकर विराजमान होता है और देवलोकवासियों को सदैव आनन्द देता है, उसी प्रकार भगवान् भी समस्त गुगों से सम्पन्न तथा सर्व जीवों को प्रमोद प्रदान करने वाले हैं ।।९।। दृष्टान्तभूत मेंरु का वर्णन करने के लिए सूत्रकार कहते हैं 'सयं'इत्यादि । शब्दार्थ-'सहस्साण उ जोयणाणं सयं-सहस्राणां योजनानां तु शतम्' वह सुमेरु पर्वत सौहजार योजनकी ऊंचाईवाला है 'तिकंडगे-त्रिकंडका' उसके तीन विभाग हैं 'पडंगवेजयंते-पण्डकवैजयन्तः' उस सुमेरु पर्वत के सबसे ऊपर रहा हुआ पण्डक वन पताका के जैसा शोभायमान हो ગુણેથી યુક્ત હે.ય છે, એજ પ્રમાણે મહાવીર પ્રભુ પણ સૌને પ્રભેદ દેનારા પ્રશસ્ત વર્ણાદિ ગુણેથી સંપન્ન હતા. તાત્પર્ય એ છે કે સુરાલય (દેવલેક રૂપ દેવતાઓનું નિવાસસ્થાન) અનેક ગુણેથી વિભૂષિત હવાને કારણે તેમાં નિવાસ કરનારા દેવ દેવીઓને આનંદ પ્રદાન કરે છે, એ જ પ્રમાણે મહાવીર પ્રભુ પણ સમસ્ત ગુથી સંપન્ન હોવાને કારણે સમસ્ત અને પ્રમાદ પ્રદાન કરનારા હતા. એ છે આગલા સૂત્રમાં મેરુ પર્વતનું દૃષ્ટાન્ત આપવામાં આવ્યું છે, તેથી હવે सूत्र.२ मे२ ५'तनु वन ४२ छ–'सयं' त्या शपथ-'महस्साण उ जोयणाणं सयं-सहस्राणां योजनानां तु शतम्' ते सुभे३ पति र योनी या पानी छ. 'तिकंडगे-त्रिकंडकः' तात्रय . विभाग छ. 'पडंगवेजयंते-पडवैजयन्तः' ते सुभे३ ५'तना भया बाया For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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