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बोधिनी टीका प्र. शु. अ. ६ उ. १ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४०५ अन्वयार्थ - (से) सः - बर्द्धमानस्वामी (भूषण्णे) भूतिमज्ञोऽन्तज्ञानवान् (अणि अवारी) अनिकेतचारी - गृहरहितः, (ओघारे) ओघन्तरः - संसारसमुद्रतरणशीलः (धीरे धीरः- मेधावी (अनंतचाखू) अनन्तचक्षुः- केवलज्ञानी (सुरिए) सूर्यइव प्रकाशकः (अणुत्तरे) अनुत्तरः- सर्वाविशायी (तपः) तपति सर्वेभ्योऽधिकज्ञानीत्यर्थः, (त्रयणिदेव) वैरोचनेन्द्र इव (तमं पता से) तमः प्रकाशपति अग्निरिव अन्धकारं विनाश्य पदार्थप्रकाशकइति || ६ ||
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टीका - (से) स भगवान् महावीरस्वामी, (भूइपन्ने) भूतिमज्ञः तत्र भूतिशब्द:वृद्धमङ्गलरक्षास्पर्शेषु वर्त्तते । तथाच भूतिप्रज्ञः, भूतिः - प्रवृद्धा महती - प्रज्ञा यस्य सागर को पार करनेवाले 'धीरे-धीरः' बुद्धिशाली 'अनंतचाखू - अनंत चक्षुः' केवलज्ञानी 'सूरिए व सूर्य इव' जैसे सूर्य 'अणुसरे - अनुत्तरः' सबसे ज्यादा 'तथ्य-तपति' तपता है इसी प्रकार भगवान् सबसे अधक ज्ञानवाले थे 'बेरोयनिदेव- वैरोचनेद्र इव' अग्नि के समान 'तमं पगासे' 'तमः प्रकाशयति' अन्धकार से वस्तु का प्रकाश करनेवाले है अर्थात् भगवान् अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करके पदार्थों के यथार्थ स्वरूप को प्रकाशित करते हैं || ६ ||
अन्वयार्थ - भगवान् महावीरस्वामी अनन्तज्ञानी, अनिकेत रूप से विचरण करनेवाले अर्थात् गृहरहित, संसारसागर से तिरने वाले, धीर, अनन्तदर्शनवान् सूर्य के समान प्रकाशशील सर्वोत्तम, सब से अधिक ज्ञानवान्, वैरोचन इन्द्र के समान तथा अग्नि के समान अज्ञानान्धकार का विनाश करके पदार्थों के प्रकाशक थे । ६ ।
इवावापा 'धीरे-धीर' शुद्धिशाणी 'अनंत चक्खू' - अनंतचक्षुः' ठेवणज्ञानी 'सूरिए व सूर्य इव' लेवी रीते सूर्य' 'अणुत्तरे - अनुत्तरः' अधाथी वधारे 'तप्पतपति' तये छेत्री रीने भगवान मधाथी अधिक ज्ञानवाणा इता वैरोयणिंदेव- वैरोचनेन्द्र इव' अग्निना समान 'तमं पगासे - तमः प्रकाशयति' मध२थी વસ્તુને પ્રકાશ કરવાવાળા છે મર્થાત્ ભગવાન અજ્ઞાનરૂપી અંધકારને દૂરકરીને પદાર્થાને યથા સ્વરૂપથી પ્રકાશિત કરે છે. ॥ ૬ ॥
સૂત્રા
ભગવદ્ વમાન સ્વામી અનન્તજ્ઞાની, અનિયતરૂપે વિચરણુ ४२नाश, भेटले } शृडरडित, संसारसागरने तरनारा, धीर, अनन्तद्दर्शनवान्, સૂર્યના સમાન પ્રકાશશીલ, સર્વોત્તમ, સૌથી અધિક જ્ઞાનવાત્, વૈરાચન-ઇન્દ્રના સમાન તથા અગ્નિના સમાન અજ્ઞાનાન્ધકારના વિનાશ કરીને પદાર્થોના प्राश ता ॥६॥
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