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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सनार्थकोधि नी टीका प्र. श्रु. म. ५ उ.२ नारकीयवेदनानिरूपणम् ४११ अन्वयार्थः-(तत्थ) तत्र नरके (समूसिया) समुच्छ्रिता-अधोमुखीकृत्य लंबमानाः, (विमूणियंगा) विशूणितांगा अपगतस्वचो नारकाः 'अयोमुहेहि' अयोमुखैः लोहचत् कठिनमुखयुक्तैः पक्खिहि' पक्षिमिः 'खज्जति खाद्यन्ते (संजी. वणी नाम) संजीवनी नाम-यत्र मृता अपि न म्रियन्ते (चिरद्वितीया) चिरस्थितिका बहुकालस्थायिनी (जंसि) यस्यां (पावचेया) पापचेतसः पापकलुषिताः (पया) प्रजाः नैरयिकाः (हम्मइ) हन्यन्ते-मार्यन्ते इति ॥९॥ टीका-'तत्थ तत्र नरके 'समूसिया' समुच्छिताः स्तंभे ऊर्धवाहवोऽधः शिरसः कृत्वा चाण्डालादिना चर्मवत् लंबिताः । 'विमूणियंगा' विशूणितांगा:उस्कृताऽङ्गकाः निःसारितत्वचः 'अयोमुहे हिं' अओमु वः वज्रवंचुमिः काक' है 'सि-यस्मिन्' जिस नरक में 'पावचेता-पापचेतसः' पाप षित 'पया-प्रजाः' नैरयिक 'हम्मइ-हन्यन्ते' मारे जाते हैं । ___ अन्वयार्थ-नरक में नीचा मुख करके लटकते हुए ' रहित नारकजीवों को लोहे के समान कठोर चौर चींचते हैं। नरकभूमि संजीवनी है जहाँ प्राणानि नारक अकाल में मरते नहीं हैं और वहां पाप से कलुषित नारक वहां मारे जाते हैं टीकार्थ--जैसे चाण्डाल चमडे को माधार्मिक नारक जीवों को खंभे भुजाएँ ऊंची और मस्तक नीचे भायु माटी य छे. 'जंसिसुषित ‘पया-प्रजा' नै२० सूत्राथ-२४५. सट छ, पारे । માંસ ખેંચી કા” माह 43 કરવા છે For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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