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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.५ उ. २ नारकीयवेदनानिरूपणम् ५०५ अन्वयार्थः-(बाला) बाला:-अज्ञानिनो नारकाः (लोहपह व तत्त) लोहपथमिव तप्ताम् (पविज्जलं) प्रदीतजलां (भूमि) भूमि-पृथिवीम् (बला अणुक्कमंता) बलात् अनुक्राम्यमाणाः बलात्कारेण परमाधार्मिकैश्वाल्यमानाः (जसि) यस्मिन् (अभिदुग्गंसि) अभिदुर्गे अतिकठोरे (पवज्जमाणा) प्रपद्यमानाः-परमाधार्मिकद्धारा चलनाय प्रेरिताः यदि न चलंति तदा (पेसेव) प्रेष्यान् वृषभानिव (दंडेहिं) दण्डैः (पुरा करंति) पुरः कुर्वन्ति अग्रे तान् चाळयन्तीति ॥५॥ _ 'बाला बला भूमि' इत्यादि । शब्दार्थ-'याला-बाला:' अज्ञानी नारकी जीव 'लोहपह व तत्तलोहपथमिक तप्ताम्' जलता हुआ लोहमय मार्ग के समान तपी हुई 'पविज्जलं-प्रदीप्तजला' तथा रक्त और सीवरूप कर्दन से युक्त 'भूमिभूमिम्' भूमि पर 'बला-बलात्' बलपूर्वक परमाधार्मिकों द्वारा 'अणु. कमंता-अनुक्राम्यमाणाः' चलाये जाते वे चुरी तरह चिल्लाते हैं जसियस्मिन' जो भी 'अभिदुग्गंसि-अभिदुर्गे' अति कठोर स्थान पर 'पवजमाणा-प्रपद्यमानाः' परमाधार्मिकों के द्वारा चलने के लिये प्रेरित किये हुए जब ठीक नहीं चलते हैं तब 'पेलेव-प्रेष्यान्' बैल के समान 'दंडेहि-दण्डैः' दंडों से 'पुरा करंति-पुरः कुर्वन्ति' आगे चलाते हैं ॥५॥ . ___ अन्वयार्थ--परमाधार्मिक उन अज्ञान नारक जीवों को तपे हुए लोहपथ के समान तपी हुई तथा रुधिर पीव आदि से पंकिल भूमि पर 'बाला बलाभूमि' या Avat:- 'बाला-बालाः' अज्ञानी ॥२४ ७५ 'लोहपहं च तत्त-लोहपथमिव तप्ताम्' मणे मना भागना रेभ तपेदी 'पविज्जलं-प्रदीप्तजला' तथा २४भने ५३ ३५ ४६१था युटत 'भूमि-भूमिम्' भूमि ५२ 'बला-बलात्' पूर्व ५२मायामि वा 'अणुकमंता-अनुक्राम्यमाणाः' यदापामा भापता तेसो १२१५ रीते भूमी । छे. 'जसि-यस्मिन्' मा 'अभिदुग्गंसि-अभिदुर्गे' मति २ स्थान ५२ 'पवन्जमाणा-प्रपद्यमानाः' ५२मायामि नाश ચાલવા માટે પ્રેરિત કરવા છતાં પણ જ્યારે ઠીક નથી ચાલતા त्यारे 'पेसेव-प्रेश्यान्' भनी म 'दंडेहि-दण्डैः' माथा 'पुरा करंतिपुरः कुर्वन्ति' मा या छे. ॥५ . સૂત્રાર્થ–પરમધામિકે તે અજ્ઞાન નારકને તપાવેલા લેઢાના માર્ગના જેવી અતિશય ગરમ અને લેહી, પરુ આદિથી યુક્ત ભૂમિ પર ચલાવે છે જે सू० ५१ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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