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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे मम्-बाहू पैकत्तंति य मूलतोसे', थूलं वियासं मुहे आडहंति। रहंसि जुत्तं सरयंति बालं आरुस्स विझंति तुदेण पिढे"॥३॥ छाया--बाहून्यकर्त्तयन्ति समूलतस्तस्य स्थूलं विकाशं मुखे आदहन्ति । रहसि युक्तं स्मारयन्ति बालमारुष्य विधन्ति तुदेन पृष्ठे ॥३॥ अन्वयार्थः-परमाधार्मिकाः (से) तस्य नैरयिकस्य (बाहू) वाहून (मूलतो) मूलतः (पकत्तंति) प्रकलयन्ति-खण्डयन्ति (मुहे) मुखं (वियास) विकाश्य-बलान्मुखं स्फारयित्वा (थूलं) स्थूलं-गलन्लोहखण्डं प्रवेश्य (आडांति) आदहंति-ज्वालयन्ति (रहंसि) रहसि एकान्ते (जुत्तं) युक्तं जन्मान्तरीयदुष्कृतं (बालं) बालम् अज्ञानीनं 'याहू पत्तति' इत्यादि। शब्दार्थ-'से-तस्य' परमाधार्मिक नारकिजीव की 'पाह-वाहून्' भुजाओं को 'पकत्तंति-प्रार्त्तयन्ति' काटते हैं 'मुहे-मुखे' मुख को 'वियास-विकाश्य बलपूर्वक फाडकर ‘थूलं-स्थूलम् ' जलते हुए लोह के बडे बडे गोले डालकर 'आडहंति-आदहन्ति' जलाते हैं 'रहंसिरहसि तथा एकान्त में 'जुतं-युक्तं' उनके जन्मान्तर के कर्म 'बाल-बालं' उस अज्ञानी जीव को 'सारयंति-स्मारयन्ति' स्मरण कराते हैं 'आरुस्स-आरुष्य' तथा विना कारण क्रोध करके 'तुदेण-तुदेल' चाबुक से 'पिढे-पृष्ठे' पृष्ठ भाग में विज्झति-विध्यन्ति' ताडन करते हैं ॥३॥ अन्वयार्थ - परमाधार्मिक नारकजी की भुजाओं को मूल से काट देते हैं तथा जबर्दस्ती मुख को फाडकर उसमें जलते हुए लोह 'बाहू पकत्तंति' त्याह Ava-'से-तस्य' ५२माधम ना२४ी ७नी 'बाहू- बाहून्' भुत. भान 'पकत्तंति--प्रकर्त्तयन्ति' अछे 'मुहे-मुखे' भुमने 'वियास-विकाइय' मग 31'थूल-स्थूलम्' mत सोमना मीट मा गणानाभाने 'आडहंति-आदहन्ति' माणे छे. 'रहंसि-रहमि' तथा मेन्तमा 'जुत्तं-युक्तं' तमना सन्मान्तर मनु 'बालंबालम्' अज्ञानी ने 'सारयंति-स्मारयन्ति' भ२५ ४२२३ छे. 'आरुस्स-आरुष्य' तथा ६४ र ५ ४ीने 'तुदेण-तुदैन' यामुॐथी 'पिढे-पृष्ठे' पाछन AIRi 'विझंति-विध्यन्ति' मारे छ. ॥3॥ સૂત્રાર્થ–પરમાધાર્મિક નારક જીવની ભુજાઓને મૂળમાંથી કાપી નાખે છે, અને તેમનાં મુખ બળાત્કારે બોલાવીને તેમાં ખૂબ જ તપાવીને લાલચળ કરેલા લોઢાના ગોળ અથવા દંડ દાખલ કરે છે. આ રીતે તેઓ તેને ખૂબજ દઝાડે છે. તેઓ તેને એકાન્તમાં લઈ જઈને તેના પૂર્વજન્મનાં પાપાનું For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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