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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे मूलम् - हेरथेहि पाएहि य बंधिऊणं, उदरं विकतंति खुरासिएहिं । front बास्स विहतं देहं वेद्ध थिरे पिओ उरंति॥२॥ छाया -हस्तेषु पादेषु च बन्धयित्वा उदरं विकर्त्तयन्ति क्षुरासिभिः । गृहीत्वा बालस्य विहतं देहं व स्थिरं पृष्ठतः उद्धरन्ति ॥२॥ अर्थ :- (हत्थेहिं ) हस्तेषु (य) च - पुनः ( पाए हिं) पादेषु (बंधिऊणं) safear - परमधार्मिकाः (खुरासिरहिं) क्षुरासिभिः क्षुरखङ्गैः (उदरं ) उदरं (विति) विकर्तयन्ति खण्डयन्ति (बालस्स) बालस्याज्ञानिनो (विहतं देहं ) विहतं देहं दण्डादिमडारे - जर्जरितं शरीरं (गिणित) गृहीत्वा (पिओ) पृष्ठतः पृष्ठदेशात् (ब) चर्म (थिरं) स्थिरं बलपूर्वकम् (उद्धरति) उद्धरन्ति-विदारयन्तीति ॥२॥ - 'हत्थेहि' इत्यादि । शब्दार्थ - - ' हत्थे हिं-हस्तेषु' परमाधार्मिक नारकी जीवों का हाथ 'य-ब' और 'पाएहिं पादेषु' पैर 'बंधिऊणं बंधत्वा' बांधकर 'खुरा सिएहिं क्षुरप्रासुभिः' अस्तुग और तलवार के द्वारा 'उदरं - उदरम्' उनका पेट 'विकसंति- विकर्त्तयन्ति' चीर देते हैं 'बालस्स - बालस्य' अज्ञानी ऐसे नारक जीव की 'विहतं देहं विहतं देहं दण्डप्रहार आदि से अनेक प्रकार ताडन की हुई देह को 'मिहित्तु गृहीत्वा' ग्रहण करके 'पिट्ठओ - पृष्ठतः' पृष्ठ भाग से 'बद्धं वधम् ' चमडे को 'थिरं-स्थिरम् ' बलात्कारपूर्वक 'उद्धरंति उद्धरन्ति' खींचते हैं ॥२॥ -- अन्वयार्थ -- नरकपाल नारक जीवों के हाथ और पैर बाँधकर और खड्ग से उदर को फाडते हैं। अज्ञानी जीवों के विहत अर्थात् छुरा For Private And Personal Use Only " हत्थेहि" इत्याहि शब्दार्थ - ' हत्थे हिं - इस्तेषु' परमाद्यामि ना२५ लवोना हाथ 'य-च' अने 'पाएहि पादेषु' ५ धि-घयित्वा'ांधीने 'खुरासिरहि क्षुरप्रासुभिः ' अस्तरा अने तलवारना द्वारा 'उदरं - उदरम्' तेमनु पेट 'विकत्तंति - विकर्त्तयन्ति' धीरे हे 'बालरस - बालस्य' अज्ञानी सेवा नार! अपनी 'विहतं देहं - विहतं देहं ' 'उ प्रहार वगेरेथी अनेक अारे भार मधेस शरीरने 'गिन्धित्तुगृहीत्वा' ने 'पिट्ठओ- पृष्ठतः ' पाछणना लागथी 'बद्धं बधम्' याभडीने 'fai-fara' wele ya's ‘agila-zzzfa' d'ell à 3. uzu સૂત્રા—નરકપાલ નાર જીવેના હાથ અને પગ માંધીને છરી અને ખડગ વડે તેમનું પેટ ચીરી નાંખે છે. તેએ અજ્ઞાની થવાના વિદ્યુત (શસ્ત્રોના
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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