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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra • ३९२ www.kobatirth.org सूत्रकृतात्रे अन्वयार्थः -- (अ) अथानन्तरम् ( पासयदुक्खधम्मं ) शाश्वतदुःखधर्मं नित्यदुःखस्वभाव (अव) अपरमन्यत् (तं) तं नरकं (भे) भवते ( जहातहेणं) याथातन (पत्रकखामि) प्रवक्ष्यामि - कथयिष्यामि (जहा) यथा (दुकड कम्मकारी) दुष्ककर्मकारिणः क्रूरपापकर्माणः (वाला) बाला - परमार्थम जामाना: (पुरेकडाइ ) पुराकृतानि पूर्वजन्मोपार्जितानि (कम्मा) कर्माणि - ज्ञानावरणीयाद्यष्टकर्माणि (वेदंति) वेदयंति - अनुभवन्तीति ॥ १॥ टीका - अह' अथ - अनन्तरम् यदेव पूर्वस्मिन् प्रकरणे निर्दिष्टं तच्छेषभूतं द्वितीये कथयिष्यामि | 'अवर' अपरम् 'सासयदुक्खधम्मं' शाश्वतदुःखधर्मम्, 'तं तम्' उस नरक के विषय में 'भे-भवते' आप को 'जहातहेणं याथामध्येन' यथार्थ रूप से 'वक्खामि प्रवक्ष्यामि' में कहूंगा 'जहा याथा' जिस प्रकार 'दुक्कडकम्मकारी - दुष्कृतकर्मकारिणः' पापकर्म करनेवाले 'बाला - बालाः' अज्ञानी जीव पुरेकडाई पुराकृतानि' पूर्वजन्म में किये हुए 'कम्मा - कर्माणि' अपने कर्मों का 'वेदंति वेदयन्ति' वेदन करते हैं अर्थात् भोगते हैं ॥ १ ॥ 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्वयार्थ - - इसके अनन्तर निरन्तर दुःखमय दूसरे नरक के विषय में यथार्थरूप से आप को कहूंगा। पापकर्म करने वाले और परमार्थ को नहीं जानने वाले अज्ञानी जीव पूर्वकृत कर्मों को जिस प्रकार भोगते हैं सो कहूँगा ॥ १ ॥ टीकार्थ-फिर सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं - इसके पश्चात् पूर्व प्रकरण में कहने से जो शेष रह गया है, उसे दूसरे में कहूंगा । ते नरशुना विषयमा 'भे भवते' आपने 'जहातहेणं याथातथ्येन' यथार्थ ३५थी 'पवक्खामि - प्रवक्ष्यामि' हु' उडीश 'जहा यथा' के प्रारे 'दुक्कडकम्मकारीदुष्कृतकर्मकारिणः पापम' अावाजा 'बाला - बालाः' अज्ञानी व 'पुरेकडाईपुराकृतानि' पूर्व४न्ममा रेल 'कम्माई - कर्माणि' घोताना भेनु' 'वेदंति - वेदयन्ति' वेहन रे छे. अर्थात् लोगवे छे. ॥१॥ સૂત્રા—હવે બીજા કેટલાક નરકામાં ઉત્પન્ન થયેલા જીવાને કેવી કેવી યાતનાઓ વેઠવી પડે છે, તે કહેવામાં આવશે. તથા પાપકર્મોનું સેવન કરનારા, પરમાર્થાંને નહીં જાણનારા અજ્ઞાની જીવા પૂર્વીકૃત કર્મોનું ફળ કેવી રીતે ભાગવે છે, તે હવે હુ તમને કહીશ. ॥ ૧ ॥ ટીકા-માગવા ઉદ્દેશકમાં કુંભીપાક નરક આદિનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. હવે આ ખીજા ઉદ્દેશકમાં અન્ય નરકાના સ્વરૂપનુ' પ્રતિપાદન કરવા માટે For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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