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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. १ दंशमशकादिपरीषहनिरूपणम् २७ देशमश कादि परीपहमाह-'पुट्ठो य' इत्यादि । मूलम्-पुट्ठो य देसमसएहिं तणफासमचाइया। न मे दिट्टे परे लोए जेइ परं मरणं सिया ॥१२॥ छाया--स्पृष्टश्च दसमशकैस्तुणस्पर्शमशक्नुवन् । न मया दृष्टः परलोको यदि परं मरणं स्यात् ॥१२॥ अध्याय :--(दसमसएदि) देशमशकः (पुट्ठो) स्पृष्टश्च भक्षितः तथा (तणफासमचाइया) तृणस्पर्शमशक्नुवन् निकिचनत्वात् तणेषु शयानः तत्स्पर्शमशक्नुवन् कदाचिदेवं चिन्तयेत् (मे) मया (परे लोए) परो लोकः स्वर्गादिरूपः (न दि) दंश मशक आदि परीषहों का कथन करते हैं-'पुट्टो य' शब्दार्थ-'दंसमसएहि-दंशमशकै.' दंश और मशकों द्वारा 'पुटोस्पृष्टः' स्पर्श किया गया अर्थात् काटा गया तथा 'तणफासमचाइयातृणस्पर्शमशक्नुवन्' तृणस्पर्श को नहीं महसकता हुआ साधु ऐसा भी विचार कर सकता है कि 'मे-मया' मैंने 'परलोए-परलोकः' स्वर्गादि रूप परलोक को तो 'न दिढे-न दृष्ट:' प्रत्यक्ष रूप से देखा नहीं है 'परंपरंतु' तथापि 'जइ-यदि' कदाचित् 'मरणं सिया-मरणं स्यात्' इस कष्ट से मरणतो स्पष्ट दिखता है और कोई फल दीखता नहीं है ॥१२॥ अन्वयार्थ-दंशमशक परीषह अर्थात् डांस मच्छरों के डंसने पर तथा त गस्पर्श परीषह को सहन न करसकने के कारण अर्थात् अकिंचन होने से घाम पर शयन करते हुए उसके कठिन स्पर्श को महन न कर सकने से साधु कदाचिन इसप्रकार विचार करे परलोक तो मैंने देखा - હવે સૂત્રકાર ડાંસ, મચ્છર આદિ દ્વારા આવી પડતાં પરીષહેનું ४थन छ- 'पुट्ठो य' त्यहि साथ-दसमसपहि-दशमशकैः' श भने भश । द्वारा 'पुटो-स्पृष्टः' २५ ४२वाभा मावेल अर्थात् ३२७वामी मावेस तथा 'तण फासमचाइयातृणस्पर्शमशक्नुवन्' तृपना २५श ने सहन न री शाकाको साधु मेवा विया२३ 'मे-मया में "परे लोए-परो लोकः' वगेरे ३५ ५सानता 'न दिवे-न दृष्टः' प्रत्यक्ष ३५थी नयी नयी 'परं-परं' त५ 'जह-यदि हाय 'मरण सिया-मरणं स्यात्' । टया मिरयत। २५९८ नेवाय छ भने ४३॥ हेमातु नथी. ॥१२॥ સૂત્રાર્થ–દંશમશક પરીષહ એટલે કે ડાંસ, મચ્છર અદિ જંતુઓ કરડવાથી જે ત્રાસ સહન કરવું પડે છે તે ત્રાસ સહન કરવાને પ્રસંગ આવે ત્યારે તથા તૃણસ્પર્શ પરીષહને સહન ન કરી શકવાને કારણે (અકિંચન હેવાને કારણે ઘાસ પર શયન કરતી વખતે તેના કઠિન પર્શ સહન ન કરી શકવાને કારણે) For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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