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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ सूत्रकृताङ्गो अन्वयार्थः - (अह) अथानन्तरं खलु (से उबलदो होइ) स साधुः उपलब्धो भातिमम क्शवतीति स्त्रो ज्ञात्वा (तो) ततः (तहाभूएहि) तथाभूतैः-प्रयोजनैः दासवत् साधु कार्य प्रेरयति (अलाउच्छेदं) अलावु छेद-विप्पलकादिशस्त्रं (पेहेहि) प्रेक्षस्व अनिय आनय (वगुफलाइ) वलगुफलानि नारिकेलादीनि (आहराहित्ति) आहर इति आनयेत्यर्थः ॥४॥ इस प्रकार ऊपर ऊपर से मन ज्ञ प्रतीत होने वाले कूट वचनजाल से साधु पो विश्वाप्त में लेकर वह स्त्री जो करती है, उसे सूत्रकार दिखलाते हैं-'अह गं' इत्यादि शब्दार्थ ---'अह-अध' इसके पश्चात् 'से उबलद्धो होइ-स उपलको भवति' यह साधु मेरे वशवती हो गया है ऐसा जानकर 'तो-ततः' फिर वह साधुको 'लहाभूएहिं-तथाभूतैः' दासके समान अपने कार्य में प्रेरित करती है 'अलो उच्छे अलावुच्छेद'तुम्बा काटने के लिये 'पेहेहिप्रेक्षव' छुरी लाव तथा 'व-गुमलाई पल्गुफलाणि' अच्छे फल 'आहराहित्ति-आहर इति' ले आवो ऐसा कार्य कहती है ॥४॥ ____ अन्वयार्थ--तत्पश्चात् जब साधु उपलब्ध हो जाता है अर्थात् उस स्त्री के अधीन हो जाता है तब वह विविध प्रकार के आदेश देकर साधु को दास की तरह कार्यो में प्रेरित करती है। जैसे तूवें को काटने का शस्त्र पिपलक देखो, लामो नारियल आकरु आदि फल ले आओ इत्यादि।।४। આ પ્રકારે ઉપર ઉપરથી મારૂ લાગતાં ફૂટ વચનોની જાળ બિછાવીને તે સ્ત્રી સ ધુને પિતાને વશ કરી લે છે. ત્યાર બાદ સંયમથી ભ્રષ્ટ ध्येय साधुनी 34 श याय छ, तेनु १२ सूत्र२ ४थन ४२ -- महण' यात. Avt-- 'अह-अथ' ते ५छी से उबद्धो होइ-सः उपलब्धो भवति' मा साभारे १५४ गये तेम समलने 'तो ततः' ५छी ते साधुने 'तहाभयहि तथाभतेः' हासनी भा३ ते पाताना आयमा २ छ 'अलाउछेद-अलापुच्छेदम्' तुपाना सम २वा म.ट 'पेहेहि-प्रेक्षस्व' छरी साय तथा वगाफलाई बलाफलानि' साजी 'आहराहित्ति-आहर इति' सारी । हाय मत छे ।।४।। સૂત્રાર્થ – આ પ્રકારે સાધુ જ્યારે તે સ્ત્રીને અધીન થઈ જાય છે, ત્યારે છે આ તેને વિવિધ પ્રકારની આજ્ઞાઓ આપે છે. તે સાધુ તેને, દાસ હોય તેમ તેને જીફા જુદા આદેશ આપવામાં આવે છે. જેમ કે “તુંબડીને કાપવાની છી તે શોધી લાવે. જરા બજારમાં જઈને નાળિયેર આકરૂટ વિગેરે ફળ લઈ આવે” ઈત્યાદિ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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