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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir E समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ.४ उ.२ स्खलितचारित्रस्य कर्मबन्धनि० ४१ कृशः काणः खनः श्रवणरहितः पुच्छविकलः, क्षुधाक्षामो जीर्णः पिठरककपालादितमलः । वगैः पूयक्लिन्नः कृमि कुलशतैराविलतनुः, शुनीमन्वेति वा हतमपि च हन्त्येन मदनः ॥१॥इति।।गा. १॥ भोगासक्तमनसा याशी विडंबना शिलति, तां दर्शयितुं सूत्रकारउपक्रमते-'अह' इत्यादि। मूलम्-- अहे तंतुं भेदमावन्नं मुच्छिय शिक्खु काममतिवद। पलिभिदिया ण तो एच्छा पादु मुद्धि पहेति ॥२॥ छाया- अन्य तं तु मापन्न मतभकाममतिरतम् । परिभिद्य खलु तः पश्चात वाष्त्य मुधि यजन्ति ॥२॥ (पीप) से भरे हुए घावों एवं चिलमिलते हुए सजडो कीडों से व्यास शरीर वाला कुसा भी कुतिया के पीछे पीछे फिरता है। यह काम, मरे हुए को भी मारने में कोई कसर नहीं रखता ॥१॥ जिनका मन भोगों में आसक्त है उन्हें जैसी विडम्बना होती है, उसे दिखलाने का सूत्रकार उपक्रम करते हैं-'अह तं' इत्यादि । __ शब्दार्थ-- अह-अध' इसके अनन्ता 'भेदमापन्न-भेदमापन्नम्' चारित्रसे भ्रष्ट 'मुच्छियं-मूछिसम्, स्त्री में आसक्त 'काममतियटकाममतिघसम्' विषययोगों की इच्छाबाले 'तं तु-तंतु उस 'भिवभिक्षुम्' साधुको वेस्त्री 'पलिभिदिया परिभिद्य' अपने वशवी जानकर 'तो पच्छा-ततः पश्चात् पीछे पादुद्धटु-पादावुद्धृत्य' अपना पैर उठाकर 'मुद्धि-मून्धि' उस्ल के शिर पर 'पहाति-प्रघ्नन्ति' प्रहार करती हैं ॥२॥ પર નીકળી રહ્યું છે, અને જેના ઘરમાં કડાઓ ખદબદી રહ્યા છે એ બૂઢ કૂતરો પણ કામાસક્ત થઈને કૂતરીની પાછળ પાછળ ફર્યા કરે છે. આ કામવાસના મરેલાને પણું મારવામાં કોઈ કચાશ રાખતી નથી.” ! ૧ જેમનું મન ગેમાં આસક્ત હોય છે, તેમને કેવી કેવી વિટંબણાઓ सहन ४२वी पडे छत सूत्रधार ४८ ४२ छ---'अह तं' त्याह शा--'अह-अथ' मामलागल्या ५४ा 'भेदमावन्ने-भेदमापन्नम्' यात्रियी मट 'मुच्छियं-भूछि म्' समसxt 'काममतिवट्ट- काममतिवर्तम्' विषय सोगानी राणा तं तु-तंतु' से 'भिक्खु-भिक्षुम्' साधुन ते श्री 'पलिभिदिया-परिभिद्य' पाताने १२ थ्ये तासीन 'तो पच्छा' ततः-पश्चात् ते पछी 'पादुद्धटु-पादावुधृत्य' पोताना पानी 'मुद्धि-मूनि' तेना भरत। ५२ 'पहणंति-प्रध्नन्ति' घडा२ ४२ छे. ॥२॥ सू० ३६ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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