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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे 'एवमप्पा सुरक्खियो होइ' एषमात्मा सुरक्षितो भवति-एवम्-अनेन स्त्रीसम्मन्धेन विरहित आत्मा सर्वेभ्योऽयस्थानेभ्यः सुरक्षितो भवति । यतः सर्वेषां पापानां स्थानम् वनिता । अतः स्वहितमिच्छता नरेण आसां संवन्धो दूरादेव त्याज्यो विष. संबन्धवत् इति ५॥ मूलम्-आमंतिय उस्सविया भिक्खु आयसा निमंतंति। ... एयाणि चेव से जाणे सदाणि विरूंवरूवाणि ॥६॥ छाया--आमान्य उच्छ्राय्य भिक्षुमात्मना निमन्त्रयन्ति । एतांश्चैव स जानीयात् शब्दान विरूपरूपान् । ६॥ इस प्रकार जो आत्मा स्त्री के सम्पर्क से बचा रहता है, वही सब बुराइयों से बचा रहता है क्योंकि स्त्री समस्त पापों का स्थान है। अतएव अपना हित चाहने वाले पुरुष को इनका सम्बन्ध, विष सम्बन्ध की मांति दूर से ही त्याग देना चाहिए ॥५॥ - शब्दार्थ--'आमंतिय-आमन्य' स्त्रियां साधुको संकेत देकर अर्थात् मैं आपके पास अमुक समय आउंगी इत्यादि प्रकार से आमंत्रण देकर 'उस्सविया-उच्छ्रायय' और अनेक प्रकार के वार्तालाप से विश्वास देकर 'भिक्खु-भिक्षुम्' साधुको 'आयसा-आत्मना' अपने साथ भोग भोगने के लिये निमंतति-निमंत्रयन्ति' प्रार्थना करते हैं अतः 'से-सः' वह साधु 'एयाणि सहाणि-एतान् शब्दान्' स्त्री संबन्धी इन शब्दों को 'विरूवरूवाणि-विरूपरूपान्' अनेक प्रकार के पाशबन्धन के सामान 'जाणे-जानीयात् ' समजे ॥६॥ આ પ્રકારે જે આ-મા સ્ત્રીના સંપર્કથી બચી શકે છે, એ જ આત્મા બધા દેશોથી મુક્ત રહી શકે છે, કારણ કે સ્ત્રી સમસ્ત પાપોનું સ્થાન છે. તેથી આત્મકલ્યાણ ચાહતા પુરુષોએ સ્ત્રીના સમાગમને વિષ સમાન ગણીને તેનાથી દૂર જ રહેવું જોઈએ. પા शाय-- 'आमंतिय-आमन्त्र्य' रियो साधुने सतराने यात् આપની પાસે અમુક સમયે આવીશ વિગેરે પ્રકારથી આમંત્રણ આપીને કહ્યુંविया-उन्नय्य' तमा भने ५४२ qafatul विघास उगवीन भिम्खु -भिक्षुम्' साधुने 'आयसा-आत्मना' पातानी साधे ॥ ११॥ भाट 'निमंतंति-निमन्त्रयन्ति' प्रार्थना रे छे. 'से-सः' ते साधु 'एयाणि सदाणिएतान् शब्दान्' श्री सीमा शण्होने 'विरूवरूवाणि-विरूपरूपान्' भने। १२न! पाश चननी म 'जाणे-जानीयात्' समो. ॥६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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