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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir : समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ४ उ. १ स्त्रीपरीषह निरूपणम् २०७ दर्शयन्ति, किंबहुना बाहू ऊद्धवकृत्य स्वकमपि प्रदर्शयन्ति, ततोऽनुकूलं स्थान व्रजन्ति एते हि प्रकाराः पुरुषव्यामोहाय मवन्तीति कामशास्त्रे प्रसिद्धा, इति भात्रः | ३ | मूलम् - सयणासणेहिं जोगेहिं इत्थिंओ एगयां निमंतंति । ऍयाणि चेत्र से 'जांणे पासणि विरूवरुवाणि ॥ ४ ॥ छाया -- शयनासनेन योग्येन स्त्रिय एकदा निमंत्रयन्ति । एतानि चैव स जानीयात् पाशान् विरूपरूपान् ॥४॥ अन्वयार्थः -- ( एगया) एकदा-कदाचित् (इत्थीओ) खियः (जोग्गेहिं) योग्यैः उपभोगयोग्यैः (यासणे हिं) शयनाशनेन (निमंतंति) निमंत्रयन्ति साधुम् बांधने का बहाना करती हैं। शरीर के निम्न भाग को उन्हें दिख लाती हैं। भुजाएं ऊंची करके और अपनी कांखें दिखलाकर अनुकूल स्थान में जाती हैं ॥ ३ ॥ शब्दार्थ - ' एगया - एकदा ' किसी समय 'इरिथओ - स्त्रियः' स्त्रियां 'जोगे हिं- योग्येन' उपभोग करने योग्य 'सपणासणेहिं - शयनासनैः' पलंग और आसन आदिका उपभोग करने के लिये 'णिमंतति-निमंत्रयन्ति' साधुको आमंत्रण देती है परंतु 'से- सः' वह साधु 'एयाणिएतानि ' इन्हीं सब बातों को 'विरूवरूयाणि - विरूपरूपान्' अनेक प्रकार के 'पासाणि पाशान' पाशबन्धन 'जाणे - जानीयात् ' जाने ||४|| अन्वयार्थ - - कभी कभी खियां उपभोग के योग्य शय्या (बिछौना) और आसन के लिए साधु को आमंत्रित करती हैं, परन्तु साधु उन शय्या आसनों की विविध प्रकार के कर्मों का बन्धन समझे ||४॥ વાર દ્વીધુ' કરીને ફરી ઠીક કરવાના ઢોંગ કરે છે, પેાતાના શરીરના આધા ભાગેાને બતાવીને તથા કાઈ પણ બહાને ભુજાએ ઊંચી કરીને બન્ને પગલે બતાવીને સાધુની ઝામવાસનાને પ્રદ્દીપ્ત કરવાના પ્રયત્ન કરે છે. ઘણા शब्दार्थ' - ' एगया - एकदा ' । समये 'इत्थिओ - स्त्रियः' स्त्रियो 'जोगेहि -योग्येन' उपलोग ४२वा योग्य 'खपणासणेहिं - शयनासनैः' यस न्मने सन विगेरेना उपलोग ४२वा माटे 'णिमंतति - निमंत्रयन्ति' साधुने सांभत्र रे छे ५२'तु 'से - सः' ते साधु 'एयाणि - एतानि' या तमाम वाताने 'विरूवरूवाणि - विरूपरूपान्' ने अमरना 'पाखाणि पाशान्' पाश बन्धनाने 'जाणेजानीयात् सम से, ॥४॥ સૂત્રા—કાઇ કોઈ વખત સ્ત્રિઓ ઉપભાગને ચાગ્ય શય્યા અને શાસનના સ્વીકાર કરવાને માટે સાધુને આગ્રહ કરે છે, પરન્તુ તે શય્ય For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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