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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्ग सूत्र अन्वयार्थः - (इह) इहास्मिन् लोके (वणिएहिं) वणिग्भिः (आहियं) आहितं = देशान्तरादानीतं (अग्गं) अयं प्रशस्तं रत्नादिकं (राईणिया) राजानः (धारंति) धारयति विभ्रति (एवं) एवमनेन प्रकारेण (अक्खाया) आख्यातानि-तीर्थकरद्वारा प्रतिपादितानि (सराइभोयणा) सरात्रिभोजनानि = रात्रिभोजनपरित्यागयुक्तानि (परमा) परमाणि उत्कृष्टानि (महव्वया) महाव्रतानि =प्राणातिपातविरमणादीनि, महापुरुषा भाग्यवन्तएव धारयति।।३।। और भी उपदेश करते हैं--'अग्गं वणिएहि” इत्यादि । शब्दार्थ-'इहं-इह इसलोक में वणिएहि-वणिग्भिः ' बनियों के द्वारा 'आहियं-आहितम्' दूर देशसे लाए हुए 'अग्गं-अयम्' उत्तमोत्तम वस्तुओं को 'राइणिया-राजानः' राजा महाराजा आदि धारंति-धारयन्ति' धारण करते हैं 'एवं-एवम्' इसीप्रकार 'अक्खाया-आख्यातानि' आचार्य के द्वारा प्रतिपादित 'सराइभोयणा-सरात्रिभोजनानि' रात्रि भोजन के परित्याग सहित 'परमा -परमाणि उत्कृष्ट 'महव्वया-महाव्रतानि' प्राणातिपातविरमण आदि महाव्रतों को साधु पुरुष धारण करते हैं ॥३॥ - अन्वयार्थ - जैसे व्यापारियों द्वारा देशान्तर से लाये हुए उत्तम रत्न आदि को यहां राजा लोग धारण करते हैं, इसी प्रकार तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित रात्रि भोजनविरमणसहितप्राणातिपातविरमण आदि महावता को महापुरुष भाग्यवन्त ही धारण करते हैं ।।३।। पी सूत्रसर उपदेश माछ-" अग वणिपहि" त्याद शा---'इह-इह' मा सोमा वणिएहि-वणिग्भिः' पसिना द्वारा 'आहियआहितम्' २ शिथी सास 'अग्ग-अश्यम्' उत्तमोत्तम वस्तुमाने 'राइणिया-राजानः' सन्न महान पोरे 'धारति-धारयन्ति धार ४२छे एवं-एवमू' मा प्रारे 'अक्खायाआख्यातानि' मायाना द्वारा प्रतिपादित 'सराइभोयणा-सरात्रिभोजनानि' त्रि. सोनना परित्यारानी साथे 'परमा-परमाणि' अष्ट महव्यया-महाव्रतानि' प्रातिपात વિરમણ વગેરે મહાવતને સાધુપુરૂષ ધારણ કરે છે. તે ૩ છે -सूत्राथ જેવી રીતે વ્યાપારીઓ દ્વારા પરદેશમાંથી લાવવામાં આવેલાં ઉત્તમ રન આદિકેને રાજાએ ધારણ કરે છે, એ જ પ્રમાણે તીર્થકર દ્વારા પ્રતિપાદિત રાત્રિ ભેજનવિરમણ સહિત પ્રાણાતિપાતવિરમણ આદિ મહાવ્રતને ભાગ્યશાળી પુરુષો જ ધારણ કરે છે. આવા For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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