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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे पुनरपि उपदेशान्तरमधिकृत्याह सूत्रकारः ‘एवं मत्ता' इत्यादि । एवं मत्ता महंतरं धम्ममिणं सहिया वहूजणा गुरुणो छंदाणुवत्तगा विरया तिन्त्रमहोघमाहियं तिबेमि ॥३१॥ छायाएंव मत्वा महदन्तरं धर्ममेनं सहिता बहवो जनाः। गुरोश्छन्दाऽनुवर्तका विरता स्तीर्णा महौघमारख्यातम् ॥इति ब्रवीमि ॥३२॥ अन्वयार्थः (एवं) एवमनेन प्रकारेण (मत्ता) मत्वा (महंतरं) महदन्तरं सवर्थोत्तमम् (धम्ममिणं) धर्ममेनम् श्रुतचारित्रलक्षणमिमं धर्मम् स्वीकृत्य (सहिया) सहिताः= पुनः उपदेश करते हैं-"एवं मत्ता" इत्यादि । शब्दार्थ-एवं-एवम्' इस प्रकार 'मत्ता-मत्त्वा' मानकर 'महंतरं-महदन्तरम्' सर्वोत्तम 'धम्ममिणं-धर्ममेनम्' इस श्रुतचारित्ररूप आहेत धर्म को स्वीकार करके 'सहिया--सहितः, ज्ञानादियुक्त 'गुरुणो छंदाणुवत्तगा-गुरोछंदानुवर्तकाः' गुरु के अभिप्रायानुसार वर्तनेवाले 'विरया-विरताः' पाप से रहित 'बहुजणा -बहुजनाः' अनेकजनोंने 'महोघं-महौषम्' संसारसागर को 'तिन्ना-तीर्णाः' संसार को पारकिया है 'आहियं-आख्यातम्' ऐसा में आपसे कहता हूँ 'त्तिबेमि-इतिब्रवीमि' वह तीर्थकरके मुख से सुना है, वही आपको कहता हूँ स्व कल्पित नहीं कहता॥३२॥ -अन्वयार्थ मत्ता" रियाहि.. इस प्रकार इस श्रुतचारित्र धर्म को सर्वोत्तम मान कर, ज्ञानादि से ये सूत्र.४२ २0 देश/ने। 3५।२ ४२त! २५॥ प्रमाणे उपदेश मा छे--"एवं शहा- 'एक-एवम्' ! प्रारं 'मत्ता-मत्वा' मानीने 'मह तर-महदन्तरम्' सर्वोत्तम 'धम्ममिण धर्म मेनम्' 21 श्रुतयारित्र३५ मात धमनी स्वा॥२ ४ीने 'सहिया-सहिताः' ज्ञान कोश्थी युत 'गुरुणा छ दाणुवत्तगा-गुरोछ दानुवर्तकाः' शु३न। ममियाय अनुसार पतवावा 'विरया-विरताः' पाथी २हित 'बहुजणा-बहुजनाः' भने सवारी 'महाघ-महोघम्' सार सारने 'तिजा-तीर्णाः' संसारने पा२ ४२८ छे थे 'आहिय-आख्यातम्' मापने छु 'त्तिमि इति ब्रवीमि ते तीय ४२ना મેઢાથી સાંભળ્યું છે તે જ આપને કહું છું મારી જાતે કલ્પના કરીને કહેતા નથી. ૩રા सूत्राथઆ પ્રકારના આ કૃતચારિત્ર રૂપ ધર્મને સર્વોત્તમ માનીને, જ્ઞાનાદિથી સંપન્ન. For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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