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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतागसूत्रे अन्वयार्थ:(एवं) एवमनेन प्रकारेण (लोगंमि) लोकेऽस्मिन् (ताइणा) त्रायिना जीघरक्षकेन (वुइए) उक्तः कथितः (जे) यः (अणुत्तरे) अनुत्तरः सर्वोत्तमः (धम्मे) धर्मः प्राणातिपातादि विरमणलक्षणः तं (गिण्ह) गृहाण=स्वीकुरु (हियंति उत्तम) ___ उपयुक्त द्यूतके दृष्टान्तकी दान्तिक में योजना करते हैं"एवं लोगंमि" इत्यादि । शब्दार्थ-एवं--एवम्, इसी प्रकार 'लोगंमि--लोके' इस लोकमें 'ताइणा --त्रायिना' जगत् की रक्षाकरने वाले सर्वज्ञने 'चुइए--उक्तः' कहा हुआ 'जे. यः' जो अणुत्तरे--अनुत्तरः, सर्वोत्तम 'धम्मे--धर्मः 'धर्म प्राणातिपातादि विरमण 'तं-तम्' उसको 'गिह-गृहाण' 'ग्रहण करना चाहिए 'हियंति उत्तम-हितमुत्तमम् , यही हित करने वाला एवं उत्तम मार्ग है 'सेसऽवहाय--शेषमपहाय' चतुर जुआरी सब स्थानों को छोडकर 'पंडिए कडमिय--पण्डितः कृतमिव' जैसे चतुर जुआरी कृतनामके चतुर्थ स्थान को ही ग्रहण करता है इसी प्रकार मेधावी मुनि अनुत्तम ऐसे धर्मको ही ग्रहण करते हैं ॥२४॥ अन्वयार्थइस प्रकार इस लोक त्राता अर्थात् जीवों के रक्षक तीर्थकर देवने, जो धर्म कहा है वही सर्वोत्तम धर्म है । ' उस प्राणातिपात विरमण आदि लक्षण वाले धर्म को हितकारी और उत्तम समझ कर और ' अन्य धर्मों को - હવે સૂત્રકાર ઉપર્યુક્ત જુગારીના દૃષ્ટાન્ત દ્વારા જે વાતનું પ્રતિપાદન કરવા માગે છે, ते प्रट ४२ छ.-"एवं लोग मि" त्या शहाथ-एवं-पचम्' प्राय 'लोग मि-लोके' 2 सोभा 'ताणा-त्रायिना' गतनी २क्षा ४२१॥ वाणा सज्ञ ने 'बुइए-उक्तः स 'जे-यः' 'अणुत्तरे-अनुत्तरः' सर्वोत्तम 'धम्मे-धर्मः' धर्म-प्रातिपात विभ५३५ धर्म छे 'त-तम्' तेने 'गिहगृहाण' घडण ४२वो ये 'हियति उत्तम-हितमुत्तमम्' से हित ४२वावाको अपम उत्तम भा छ 'सेसहार-शेषमपहाय' ५५ थानने छ।डीने पडिप कमिव-पणितः જેવી રીતે ચતુર જુગારી કૃત નામના ચોથા સ્થાનને જ ગ્રહણ કરે છે, તેજ પ્રકારે મેધાવીમુન અનુત્તમ એવા ધર્મને જ ગ્રહણ કરે છે. પારકા सूत्राथએજ પ્રકારે આ લેકમાં ત્રાતા (જીવેના રક્ષક) તીર્થકર ભગવાને જે ધર્મ કહ્યો છે, એજ સર્વોત્તમ છે. એજ પ્રાણાતિપાત વિરમણ આદિ લક્ષણ વાળા ધર્મને હિતકારી For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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