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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सममा बोधिनी टीका प्र. श्रृं. अ. २ उ. २ स्वपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ५८७ - छाया-'. शीतोदकप्रतिजुगुप्सकस्य अप्रतिज्ञस्य लवावसर्पिणः । सामायिक माहुस्तस्य यत् यो गृह्यमत्रेऽशनं न भुक्त ।। २० ॥ अन्वयार्थः (सीयोदगपडिदुगुंछिणो) शीतोदकप्रतिजुगुप्सकस्य-शीतोदकमप्राशुकं जलम् तत्प्रतिजुगुप्सकस्य अप्राशुकोदकपरिहारिणः साधोः, (अपडिण्णस्स) अप्रतिज्ञस्यप्रतिज्ञारहितस्य (लवावसप्पिणो) लवावसर्पिणः लवं कर्म तस्मात् अवसर्पिणः परिहारिणः, (तस्स) तस्य एवंभूतस्य साधोः (ज)यत् यस्मात्कारणात् (सामाइय) सामायिक समभावम् (आहु) आहुः कथितवन्तः सर्वज्ञाः । (जे) यः मुनिः शब्दार्थ—'सीयोदगपडिदुगुंछिणो-शीतोदकप्रतिजुगुप्सकस्य जो साधु शीतोदक से घृणा करता है 'अपडिप्णस्स-अप्रतिज्ञस्य तथा कोई भी प्रकार की प्रतिज्ञा अर्थात् कामना नहीं करता है 'लवावसप्पिणो-लवावसर्पिण' एवं जो कर्मबन्धको उत्पन्न करने वाले कर्मों के अनुष्ठान से दूर रहता है 'तस्स-तस्य' ऐसे साधु का सर्वज्ञों ने 'ज-यत् जो 'सामाइयं-सामायिकम् , समभाव 'आहु-आहुः' कहा है तथा 'जे--यः' जो मुनि 'गिहिमत्ते-गृह्यमने गृहस्थ के पात्र में 'असणं-अशनम्' आहार 'ण भुंजइ--न मुंक्ते नहीं खाता है उसका समभाव है॥२०॥ -अन्वयार्थ-- सचित्त जलके त्यागी, निदान रूप प्रनिज्ञा के त्यागी, 'लव अर्थात् कर्म का त्याग करने वाले उसी साधु को सामायिक चारित्र कहा गया है जो गृहस्थ के पात्र में भोजन नहीं करता ॥२०॥ शहा – 'सीयादगपडिदुगु छिणो-शीतोदकप्रतिजुगुप्सकस्य' ने साधु शिया वृक्षा ४२ छ. 'अपडिण्णस्स-अप्रतिक्षस्य तथा प्रारनी प्रतिज्ञा अर्थात् माना ५रता नथी. 'लवावसप्पिणो-लवावसर्पिणः' मेवम् रे म माधने उत्पन्न ४२वावाणा उनी मनुहानथी ६२ २३ छ. 'तस्स-तस्य' सेवा साधुनी सवज्ञाय 'ज-पत्रे 'सामाइय-सामायिकम्' समला 'आहु-आहुः स छ तथा 'जे-यः' ने मुनि 'गिहि. मत्त गृह्यमत्रे' स्थना पत्रमा 'असण-अशनम्' मा.२ 'ण भुजर-न भुक्ते' पाते। નથી તેને સમભાવ છે. ૨૦ सूत्राथસચિત્ત જળના ત્યાગી, નિદાન રૂપ પ્રતિજ્ઞાના ત્યાગી, લવને (કર્મ) ત્યાગ કરનારા એવા એ સાધુને જ સામાયિક ચારિત્રવાળે કહ્યો છે કે જે ગૃહસ્થના પાત્રમાં ભજન કરતે નથી. For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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