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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ सूत्रकृतास अन्वयार्थः .. (संजए) संयत-साधुः (सुन्नघरस्स) शून्यगृहस्य--शयनादिनिमित्तेन शून्यगृहमाश्रितः साधुः शून्यगृहस्य 'दारं द्वारम् (णो पीहे) नो पिदध्यात्, तथा(न जाव पंगुणे) न यावत्प्रगुणयेत् नोघाटयेदित्यर्थः, तथा(पुढे)पृष्टः केनचित् (वयं)वचनं सावधं (ण उदाहरे) नोदाहरेत् नोवदेदित्यर्थः, तथा (ण समुच्छे) न समुच्छिन्यात्-न प्रमार्जयेदित्यर्थः तथा शयनार्थम् तृणं तृणं-घासादिकम् (णसंथरे) न सस्तरेत्-तृणैरपि संस्तारकं न कुर्यादिति ॥१३॥ टीका-- 'संजए' संयतः-- साधुः ज्ञानदर्शनचारित्रसंपन्नः। सुन्नघरस्स, शून्यगृहस्य 'दार द्वारम् ‘णो पीहे' नोपिदध्यात् । न ‘यावपंगुणे' न यावत्प्रगुणयेत् न उद्घाटयेत् सूत्रकार फिर उपदेश देते हैं-"णो पीहेण याव " इत्यादि । शब्दार्थ--'संजए-सयतः साधु 'मुन्नघरस्स-शून्यगृहस्य' शून्यघर का दारं-द्वारम्' दरवाजा ‘णो पीहे-नो पिदध्यात्' बन्द न करे 'न यावपंगुणे-न यावत्प्रगुणयेत्' तथा न खोले तथा 'पुट्टे-पृष्टः' किसी के द्वारा पूछने पर 'वयं-वनचम्' सावधवचन ‘ण उदाहरे-नोदाहरेत्' न बोले एवं ‘ण संमुच्छे-न समुच्छिन्द्यात्' उस गृह का कचरा न निकाले तथा 'तणं-तृणम्' घास वगैरह भी 'ण संथरे न संस्तरेत्' न बिछावे ॥१३॥ अन्वयार्थ- शयन आदि के निमित्त से सूने घर में रहा हुआ साधु सुनेघर के द्वारको बन्द न करे और न खोले । किसी के पूछने पर सावध वचन न बोले । घर का प्रमार्जन न करे और सोने के लिए घास आदि भी न बिछावे ॥१३॥ साधुने उपहेश २५ता सूत्र॥२२॥ विशेष ४थन ४२ छ.-" णो पीहेण याव" त्याह . शहाथ-'संजए-सयतः साधु सुन्नधरस्स-शून्यगृहस्य' शून्यधरना 'दारं-द्वारम ४२वान-यो ‘णो पीहे-नो पिदध्यात्' ५५ । ४२ 'न यावपंगुणे-न यावत्प्रगुणयेत् तथा न मालत तथा 'पुढे-पृष्टः' आना द्वारा पूछाथी 'वयं वचनम् सावध क्यन 'न उदाहरे-नोदाहरेत्' ना मासे अवम 'न समुच्छे-न समुच्छिन्द्यातू' ते ध्यरी न ४ाडे तथा 'तणं-तृणम्' धास वगेरे ५५ ‘ण संथरे न संस्तरेत्' ना पाय२ ॥१३॥ -सूत्राथશયન આદિન નિમિત્તે કઈ ખાલી ઘરમાં રહેવાને પ્રસંગે ઉપસ્થિત થાય, તો સાધુએ તે સૂના ઘરના દ્વારને બંધ પણ કરવું નહીં અને બોલવું પણ નહીં. કોઈને દ્વારા કોઈ પ્રશ્ન પૂછાય તે સાધુએ સાવધવચન બોલવા જોઈએ નહીં સાધુએ તે ઘરને વાળવું ઝુડવું જોઈએ નહીં અને શયનને નિમિત્ત ઘાસ આદિ પણ બિછાવવું જોઈએ નહીં ૧૩ For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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