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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ सूत्रकृताङ्गसूत्रे 'पुणरवि' पुनरपि 'जीवियं' जीवितम् दशभेदभिन्नं संयमजीवनम् 'नो सुलभं' नो सुलभं नो सुप्रापं भवति । ते दशभेदाः (बोल) यथा मनुष्यजन्म१, आर्यक्षेत्रमर, सुकुलम् ३, दीर्घमायुः पञ्चेन्द्रियपूर्णत्वम्५, शरीरनैरुज्यम्६, साधुसङ्गतिः७, धर्मश्रवणम्८, धर्मश्रद्धा९, धर्मे वीर्यस्फोरणं चेति१० इत्येतद्दशप्रकारकसाधनसम्पत्तिर्मनुष्याणां न सुप्रापा भवति सा युष्माकमुपस्थिता तथापि किमर्थमत्र न पराक्रमत, किमेतेन क्षणध्वंसेन राज्येन युष्माकमिति श्रीभगवदादिनाथस्योपदेश इति । अस्मिन् श्लोके वतालीयं छन्दः तल्लक्षणन्तु षड्विषमेऽष्टौ समे कलास्ताश्च समे स्युनों निरंतराः । न समात्र पराश्रिता कला वैतालीयेन्तरे रलौगुरुः ॥ १॥ नहीं लौटते । दश प्रकारका संयम जीवन भी फिर सरलता से मिलनेवाला नहीं हैं। वे दश प्रकार ये हैं (१) मनुष्य जन्म (२) आर्यक्षेत्र (३) मुकुल (४) दीर्घआयु (५) पांचों इन्द्रियोंकी परिपूर्णता (६) शरीरकी नीरोगता साधुओंकी संगति (८) धर्मश्रवण (९) धर्मश्रद्धा और (१०) धर्म में पराक्रम करना। दश प्रकारके इन साधनोंकी सम्पन्नता सभी मनुष्योंको सरलता से प्राप्त नहीं होती और वह तुम्हे प्राप्त है फिर तुम इस विषय में पराक्रम क्यों नहीं करते ? इस क्षणविनश्वर राज्य से तुम्हारा क्या हित होता हैं। यह भगवान् श्री आदिनाथका उपदेश अपने सांसारिक अठारह पुत्रोंके प्रति है । इस श्लोक में वैतालीय नामक छन्द है । इस छन्दका लक्षण इस प्रकार है-'षड् विषमेऽष्टौ' इत्यादि । तस विशिष्ट अवस। नीये प्रमाणे छे. (१) मनुष्य म; (२) माय क्षेत्र, (3) सुक्षण (४) ही आयुष्य, (५) पांये धन्द्रियानी ५२पूत। (६) शरीरनी नीरोगता (७) साधुसानो योग (८) यमः श्रपा (6) धर्म श्रद्धा भने (१०) धर्ममा पराभ દશ પ્રકારના આ સાધનની સંપન્નતા સઘળા મનુષ્યને સરળતાથી પ્રાપ્ત થતી નથી પરંતુ તમને આ દસે સાધને પ્રાપ્ત થયાં છે, છતાં તમે શા માટે મોક્ષ પ્રાપ્તિ માટે પ્રયત્ન કરતા નથી? આ ક્ષણવિનશ્વર રાજ્યથી તમારું શું હિત સધાવાનું છે? ભગવાન આદિનાથે તેમના ૧૮ સાંસારિક પુત્રોને આ પ્રકારનો ઉપદેશ આપે હતો. - આ શ્લેક તાલીચ છન્દમાં લખાય છે. વૈતાલીય છન્દનું લક્ષણ આ પ્રમાણે છે. "पह विषमेऽष्टौ" त्याह For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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