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अनुक्रमाङ्क
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अनुक्रमणिका
विषय
प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देश
१ मङ्गला चरण
२ ज्ञानका मङ्गलत्व का प्रतिपादन
३ बन्धके स्वरूपका निरूपण
४ परिग्रह के स्वरूपका निरूपण
५ प्रकारान्तर से बन्धके स्वरूपका निरूपण ६ कर्मबन्धसे निर्वृत्तिका निरूपण
७ स्वसमय प्रतिपादित अर्थका कथन
करने के पश्चात् परसमय में प्रतिपादित अर्थ का कथन
८ चार्वाक मत के स्वरूपका कथन
९ वेदान्तियों के एकात्मवादका निरूपण
१० अद्वैतवादियों के मत का खंडन
११ तज्जीव तच्छरीरवादियों के मतका निरूपण
१२ पुण्य और पाप के अभावका निरूपण १३ अकारकवादी - सांख्यमतका निरूपण १४ अकारकवादियों के मतका खण्डन
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१५ पृथिवी आदि भूतों के और आत्माका नित्यत्व १६ क्षणिकवादि बौद्धमत का निरूपण १७ चतुर्धातुवादी बौद्धमत का निरूपण १८ चार्वाक से लेकर बौद्धपर्यन्त के अन्यमतवादियों के मतका निष्फलत्वका प्रतिपादन दूसरा उद्देशा
१९ मिथ्यादृष्टि नियतवादियों के मतका निरूपण
२० नियत्यादि अन्यमतवादियों को मोक्षप्राप्ति का अभाव का कथन
२१ अज्ञानवादियों के मतका निरूपण में मृगका दृष्टान्त २२ पाशमें बंधे हुए मृगकी अवस्थाका निरूपण
२३ असम्यक् ज्ञान के फलप्राप्तिका निरूपण
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पृष्ठ
१-१०
११-१५
१६-२१
२१-२६
२७-३४
३४-३७
३८-४३
४३-१४१
१४२-१४५
१४८-१५०
१५०-१५९
१६०-१६८
१६९-२०३
२०३-२०५
२०५-२११
२१२-२२२
२२२-२३९
२३९-२५३
२५४-२७५
२७५-२७९
२७९-२८५
२८५-२८६
२८७-२९०