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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अनुक्रमाङ्क www.kobatirth.org अनुक्रमणिका विषय प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देश १ मङ्गला चरण २ ज्ञानका मङ्गलत्व का प्रतिपादन ३ बन्धके स्वरूपका निरूपण ४ परिग्रह के स्वरूपका निरूपण ५ प्रकारान्तर से बन्धके स्वरूपका निरूपण ६ कर्मबन्धसे निर्वृत्तिका निरूपण ७ स्वसमय प्रतिपादित अर्थका कथन करने के पश्चात् परसमय में प्रतिपादित अर्थ का कथन ८ चार्वाक मत के स्वरूपका कथन ९ वेदान्तियों के एकात्मवादका निरूपण १० अद्वैतवादियों के मत का खंडन ११ तज्जीव तच्छरीरवादियों के मतका निरूपण १२ पुण्य और पाप के अभावका निरूपण १३ अकारकवादी - सांख्यमतका निरूपण १४ अकारकवादियों के मतका खण्डन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ पृथिवी आदि भूतों के और आत्माका नित्यत्व १६ क्षणिकवादि बौद्धमत का निरूपण १७ चतुर्धातुवादी बौद्धमत का निरूपण १८ चार्वाक से लेकर बौद्धपर्यन्त के अन्यमतवादियों के मतका निष्फलत्वका प्रतिपादन दूसरा उद्देशा १९ मिथ्यादृष्टि नियतवादियों के मतका निरूपण २० नियत्यादि अन्यमतवादियों को मोक्षप्राप्ति का अभाव का कथन २१ अज्ञानवादियों के मतका निरूपण में मृगका दृष्टान्त २२ पाशमें बंधे हुए मृगकी अवस्थाका निरूपण २३ असम्यक् ज्ञान के फलप्राप्तिका निरूपण For Private And Personal Use Only पृष्ठ १-१० ११-१५ १६-२१ २१-२६ २७-३४ ३४-३७ ३८-४३ ४३-१४१ १४२-१४५ १४८-१५० १५०-१५९ १६०-१६८ १६९-२०३ २०३-२०५ २०५-२११ २१२-२२२ २२२-२३९ २३९-२५३ २५४-२७५ २७५-२७९ २७९-२८५ २८५-२८६ २८७-२९०
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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