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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयाय बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.१ उ. ३ जगदुत्पतिविषये मतान्तरनिरूपणम् ३५७ इत्यादि श्रुतिभिः, " जन्माद्यस्य यतः' इत्यादि ब्रह्मसूत्र या संवलितचेतनरूपस्य परमेश्वरस्य जगत उपादानकारणतां कथयन्ति । तथा-"तदैक्षत" "तत्सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशत्" "एकोऽहं बहुस्यां प्रजायेय" इत्यादि श्रुत्या, ईश्वरो जगतः कर्त्ता, चेतनत्वात् कुलालवदिति तर्केण च परमेश्वरस्य जगदुत्पत्तौ कर्तृकारणत्वं कथयन्ति वेदान्तिनः ।। नैयायिकास्तु-- जगतो गिरिसमुद्रानेरुपादानकारणं समवायिकारगाऽपर पर्यायं परमाणु वदन्ति । असमवायिकारणं तु परमाणूनां संयोगः निमित्तकारणमदृष्टदेशकालपरमेश्वरादयः । तत्र समवायिकारणं परमाणुम् , असमवायिकारणं परमाणुसंयोगं, निमित्तकारणं जीवाऽदृष्टादिकं चादाय ' चेतनत्वात् कर्तृत्वं स्वस्मिन्नासाद्य सर्वं जगत् परमेश्वरः सृजति, जगदुत्पत्तौ परमेश्वरस्य चेतनत्वात् कर्तृत्वमेव न तु समवायिकारणत्वम् । तथात्वे समवायिकारणे यन्त्यभिसंविशन्ति' 'एतदात्म्यमिदं सर्वम्' 'सच्चत्यच्चाऽभवत् — इत्यादि श्रुतिवाक्यो से तथा "जन्माद्यास्य यतः" इत्यादि ब्रह्मसूत्रों के अनुसार वे ईश्वर को जगन का उपादान कारण मानते हैं इन वाक्यों का आशय यह है कि ईश्वर के द्वारा ही भूतों की उत्पत्तिहोती है, उत्पन्न हुए भूत जीवित रहते हैं और उसके कारण अभि संवेश करते हैं । यहाँ जो कुछ भी है, सब वही ईश्वर ब्रह्म ही है। पृथ्वी, जल और तेज जो प्रत्यक्ष हैं और वायु तथा अकाश जो अप्रत्यक्ष हैं वे सब उसी के बनाये हुए हैं। मायायुक्त चेतनस्वरूप ईश्वर जगत् का उपादान है। तथा 'तदक्षत ' तत्सृष्ट्वा तदेवानु प्राविशत् ' ' एकोऽहं बहुस्यां प्रजाये य' इत्यादि श्रुतियों के प्रमाण से भी यही सिद्ध होता है, तथा ईश्वर जगत् का कर्ता है, क्योंकि वह चेतन है, जो चेतन होता है वह कर्त्ता होता है जैसे कुंभार इस तर्क से भी वेदान्ती ईश्वर को जगत् की उत्पत्ति में कर्तारूप कारण कहते हैं। "यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातोनि जीवन्ति यत्प्रयन्त्यभिस विशन्ति" "पतक्षात्म्यमिदं सर्वम्,” सच्चत्यच्चाऽभवत् त्यादि श्रुति॥४ये 43, तथा “जन्माद्यस्य यतः" त्या ब्रह्मसूत्रो अनुसार तेसो वरने तनु जाहान २] भान छ, આ વાક્યને ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે- ઈશ્વરના દ્વારાજ ભૂતની ઉત્પત્તિ થાય છે, ઉત્પન્ન થયેલા ભૂત જીવિત રહે છે, અને તેને કારણે અભિસંવેશ કરે છે. અહીં જે કંઈ પણ છે તે એજ બ્રહ્મરૂપ અથવા ઇશ્વરરૂપ છે, પૃથ્વી, જળ અને તેજરૂપ પ્રત્યક્ષ ત અને વાયુ આકાશરૂપ અપ્રત્યક્ષ તને સર્જક એજ ઈશ્વર છે. માયાયુકત ચેતનસ્વરૂપ घश्व२ गतनु जाहान २ छे. तथा “तदेक्षत, तत्सृष्ट्रवा तदेवानु प्राविशन, एकोऽह बहुस्यां प्रजायेय” इत्याहि श्रुतिमाना प्रभाए 43 पशु मे पात सिद्ध थाय छे. तथा For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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